Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 20
________________ कर्मप्रकृतिः [ २२. चक्षुदर्शनावरणीयस्य स्वरूपम् ] तत्र चक्षुषा वस्तुसामान्यग्रहणं चक्षुवंशनं तवावृणोतीति वक्षुक्र्शना वरणीयम् । [ २३. अत्रभुदर्शनावरणीयस्य स्वरूपम् ] शोषैः स्पर्शनादोन्द्रियैमनसा च वस्तुसामान्यग्रहणमचक्षुदर्शनं तदावणो तीत्यचक्षुर्वर्शनावरणीयम् । [ २४. अवधिदर्शनावरणीयस्य स्वरूपम् | रूपिसामान्यग्रहणमवधिदर्शनं तवावृणोतोश्यवधिदर्शनावरणीयम् । [ २५. केवलदर्शनावरणीयस्य स्वरूपम् ] समस्तवस्तुसामान्यग्रहणं केवलवर्शनं तदावृणोतीति केबलवर्शनावरणीयम् । २२. चक्षुदर्शनावरणीयका स्वरूप चक्षु द्वारा वस्तुका सामान्य ग्रहण चक्षुदर्शन कहलाता है, उसका आवरण चक्षुदर्शनावरणीय है। २३. अचक्षुदर्शनावरणीयका स्वरूप चक्षुके अतिरिक्त शेष स्पर्शन आदि इन्द्रियों तथा मनके द्वारा वस्तुका सामान्यग्रहण अचक्षुदर्शन है, उसका आवरण अचक्षुदर्शनावर णोय है। २४. अवधिदर्शनावरणीयका स्वरूप रूपी पदार्थों का सामान्यग्रहण अवधिदर्शन है, उसका आवरण अवधिदर्शनावरणीय है। २५. केवलदईनावरणीयका स्वरूप समस्त वस्तुओंका सामान्यग्नहण केवलदर्शन है, उसका आवरण कैवलदर्शनावरणीय है।

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