Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 18
________________ -१८] कर्मप्रकृतिः । [१६. मतिज्ञानावरणीयस्य स्वरूपम् ] . तत्र पञ्चभिरिन्द्रियमनसा च मननं ज्ञानं मतिज्ञानं तदावृणोतीहि मतिज्ञानावरणीयम् । । [१७. श्रुतशानावरणीयस्य स्वरूपम् ] मतिज्ञानगृहीतार्थादन्यस्यास्य ज्ञानं श्रुतज्ञानं तवावृणोतोति श्रुतज्ञाना वरणीयम् । [ १८. अवधिज्ञानावरणीयम्य स्वरूपम् ] वर्णगन्धरसस्पर्शयुक्तसामान्यपुदगलद्रव्यं तत्संबन्धिसंसारीजीवद्रव्याणि च देशान्तरस्थानि कालान्तरस्थानि च ब्रट्यक्षेत्रकालभवभावानवधीकृत्य यत्प्रत्यक्ष जानातीत्यवधिज्ञानं तवाणोतोत्यवधिशानावरणीयम् । १६. मतिज्ञानावरणीयका लक्षण पाँच इन्द्रियों तथा मनकी सहायतासे होनेवाला मननरूप ज्ञान मतिज्ञान है, उसे जो ढंकता है वह मतिज्ञानावरणीय है। १७. श्रुतज्ञानावरणीयका लक्षण मतिज्ञान-द्वारा ग्रहण किये गये अर्थसे भिन्न अर्थका ज्ञान श्रुतज्ञान है, उसे जो आवृत करता है वह श्रुतज्ञानावरणीय है । १८. अवधिज्ञानावरणीयका स्वरूप भिन्न देश तथा भिन्न काल में स्थित वर्ण, गन्ध, रम और स्पर्श युक्त सामान्य पुद्गल द्रव्य तथा पुद्गल द्रव्यके सम्बन्धसे युक्त संसारी जीव द्रव्योंको जो द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावको मर्यादा लेकर प्रत्यक्ष जानता है, वह अवधिज्ञान कहलाता है, उसका आवरण करनेवाला अवधिज्ञानाबरणांप है।

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