Book Title: Karmaprakruti
Author(s): Abhaynanda Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 16
________________ --] कर्मप्रकृतिः [७. दर्शनावरणीयस्य लक्षणम् उदाहरणं च ] दर्शन तामणगामि टावरणीय प्रतिहारवत् । [८. वेदनीयस्य लक्षणम् उदाहरणं च ] सुखं दुःखं वा इन्द्रियहार्वेदयतीति वेदनीयं गुडशितखड्गधारावत् । _[ ९. मोहनीयस्य लक्षणम् उदाहरणं च ] आत्मानं मोहयतीति मोहनीयं मधवत् । [१०. आयुषः लक्षणम् उदाहरणं च ] शरीर आत्मानभेति धारयतोत्यायुष्यं शृङ्खलावत् । [११. नामकर्मणः लक्षणम् उदाहरणं च ] नानायोनिषु नारकादिपर्यायरात्मानं नमसि-शब्दयतीति नाम चित्र कारवत् । ७. दर्शनावरणीयका लक्षण और उदाहरण प्रतिहार की तरह जो आत्माके सामान्यग्रहणरूप दर्शन गुणको रोकता है, वह दर्शनावरणीय है। ८. वेदनीयका लक्षण और अन्दाहरण गड-लपेटी तलवार को धारके समान जो सुख अथवा दःस्त्रको इन्द्रियों के द्वारा अनुभव कराये, वह वेदनीय है। ९. मोहनीयका लक्षण और उदाहरण शराबकी तरह जो आत्माको मोहित करे, वह मोहनीय है। १०, आयुक्ता लक्षण और उदाहरण श्रृंखलाकी तरह जो शरीरमें आत्माको रोक रखता है, वह आय कम है। ११. नाम कर्मका लक्षण और उदाहरण चित्रकार की तरह जो आत्माको नाना योनियों में नरकादि पर्यायों द्वारा नामांकित कराता है, वह नाम कर्म है।

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