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थी, ऐसे लोग स्थानकवासी साधुओं को प्रोत्साहन देने की बात सोचने लगे। कुछ लोगों ने तटस्थ रहकर तमाशबीन बनने का निर्णय लिया। जो लोग आस्थावान, दृढ़धर्मी, शास्त्रों के जानकार और विवेकसम्पन्न थे, उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि उन्हें जो संघ मिला है, वह अनुपम है। उसकी तुलना किसी से नहीं हो सकती। इसलिए वे न कहीं जाएंगे और न अपने सगे-सम्बन्धियों को जाने देंगे।
__ श्रावक समाज की प्रतिक्रियाओं की अवगति पाकर पूज्य कालूगणी ने साधुओं की सभा बुलाकर कहा-'वर्तमान के वातावरण में कोई भी साधु अन्य मतावलम्बी साधुओं से बात न करे, रास्ते में मिलने पर अपनी ओर से न बोले, उनकी ओर से बात करने की पहल हो तो भी मौन रहे।' सब सन्तों ने कालूगणी की शिक्षा के अनुसार चलना स्वीकार किया। इस प्रकार का वर्णन पूरे विस्तार के साथ पांचवे गीत में हुआ है।
प्रतिपक्षी साधुओं के स्थान पर लोगों का आवागमन शुरू हुआ। कुछ लोग द्वेषवश, कुछ बिना विचारे, कुछ अविवेक के कारण, कुछ प्रच्छन्न रूप में, कुछ नया रूप देखने के लिए, कुछ किसी को साथ देने के लिए, कुछ कुतूहलवश, कुछ नई बातें सुनने के लिए और कुछ बिना किसी प्रयोजन के वहां जाने लगे।
प्रतिपक्ष के आचार्य कभी सभा में और कभी एकान्त में तेरापंथ के सिद्धान्तों पर टीका-टिप्पणी करने लगे। इसका उद्देश्य था लोगों को भ्रान्त बनाना और तेरापंथ के प्रति अनास्थाशील बनाना। यह उपक्रम कई दिनों तक चलता रहा।
उधर कालूगणी ने अपने प्रवचन में भ्रान्तियों का निराकरण करने के लिए तेरापंथ के एक-एक मन्तव्य का विस्तार के साथ प्रतिपादन किया। प्रसंग मिश्र धर्म का हो, लौकिक एवं लोकोत्तर धर्म का हो, माता-पिता की सेवा का हो, सावद्य-निरवद्य अनुकम्पा का हो, मिथ्यात्वी की करणी का हो, छद्मस्थ के प्रमाद का हो अथवा आगम-अध्ययन का। इनके बारे में जो-जो वितर्क उपस्थित किए गए, उनका यौक्तिक ढंग से समाधान प्रस्तुत कर शालीनता का उदाहरण उपस्थित कर दिया। उक्त तथ्यों का विवेचन छठे गीत में उपलब्ध है।
___ सातवां गीत कालूगणी के युग की एक प्रसिद्ध चर्चा-चूरू की चर्चा का जीवंत दस्तावेज है। सरदारशहर से कालूगणी चूरू पधारे। प्रतिपक्षी साधु भी वहां पहुंच गए। स्थानीय लोगों को भ्रान्त करने के लिए उन्होंने छेद सूत्र में वर्णित बारह प्रकार संभोग/संभोज को चर्चा का विषय बनाया। श्रावक गोरूलालजी ने कहा-'तेरापंथी कभी सूत्रविरुद्ध प्ररूपणा नहीं करते।' इस पर आचार्य जवाहरलालजी महाराज बोले- 'यदि वे हमें सूत्र का पाठ दिखा दे तो हम उन्हें निर्दोष मान सकते
हैं।'
४४ / कालूयशोविलास-१