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लावणी छंद
४१. ओछै आऊखै मघवा स्वर्ग सिधारै', जीणो मरणो है जग में किणरै सारै I दो च्यार वर्ष सान्निध्य अगर मिल ज्यातो, संभव स्वरूप शिशु रो अद्भुत खिल ज्यातो ।। ४२. आखिर आ ही मंजूर रही नियती नै, भारी सदमा पहुंच्यो श्री कालू सीनै ।। अधखिली रही मानस - प्रसून री कळियां, अगा नाज पडूयो ही रहग्यो खळियां । ।
गुरु - गरिमा महिमा भारी ।
४३. शेष समय लग सद्गुरु-सेवा, सारी रीते सारी रे। चातक-घन चेतन तन सम रहि, कालू-गुरु इकतारी रे।। ४४. अवर प्रवर जय-पटधर ख्याती, मैं संक्षेपे ढारी रे। विस्तर खातिर जो जिज्ञासा, मघव सुयश' मनहारी रे।। चउथी ढाळ चतुर-चित - हरणी, वरणी बहु विस्तारी रे। श्री मघवा शासनपति ‘तुलसी' अप्रतिबंध-विहारी रे।।
४५.
कलश
४६. आचार्य पद युवराज पद चारित्र सर्वायू बली, वर सार्द्ध ग्यार अठार इकताली त्रिपंचाशत मिली। गहि जीत - गादी रीत सादी, स्फीत आजादी करी, वन्नां - सुजात गुलाब-भ्रात, मुनीश 'मघ' सुर- श्री वरी ।।
१. तिरेपन वर्ष की अवस्था में
२. मुनि कालूरामजी
३. लय: जय जश गणपति वन में
४. जयाचार्य के उत्तराधिकारी मघवागणी
५. श्री माणकगणी द्वारा रचित मघवागणी का जीवन-वृत्त, देखें आचार्य चरितावलि, खण्ड २
७२ / कालूयशोविलास-१