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को प्रतिबोध देने गईं और उन्हें समयोचित शिक्षा दी ।
११४. साध्वी किस्तूरांजी की अंतिम तपस्या के पचास दिन संलेखना और अनशन दोनों मिलाकर हैं। उनके संबंध में आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित दोहाकस्तूरां करणी करी, तपोयोग सुविशेष। दिन पचास संलेखना, अंतिम अनशन शेष । ।
११५. आचार्यश्री कालूगणी जब लाडनूं पधारे, उस समय उन्हें फणयुक्त काले नाग का शकुन हुआ । आचार्य श्री तुलसी को शिष्य रूप में प्राप्त कर उन्होंने शकुन के फल को सत्य प्रमाणित कर दिया ।
११६. मुनि चम्पालालजी ने वि. सं. २००१ फाल्गुन कृष्णा द्वादशी को एक साथ आठ दिन की चौविहार तपस्या का प्रत्याख्यान किया । आठवें दिन आजीवन चौविहार अनशन कर लिया। तीन दिन के अनशन में उनका स्वर्गवास हुआ। उनके संबंध में आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित सोरठा
तप सात दिवस चौव्यार, तीन दिवस अणसण रही। कीधो खेवो पार, चंपो मोटे गाम रो ।।
३१६ / कालूयशोविलास-१