Book Title: Kaluyashovilas Part 01
Author(s): Tulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
Publisher: Aadarsh Sahitya Sangh

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Page 351
________________ ५/६ अन्तर ढाळ चेतन चिदानन्द चरणां में... । * वृन्दावन का कृष्ण कन्हैया सबकी आंखों का तारा। मन ही मन क्यों जले राधिका मोहन तो है सबका प्यारा।। ध्रुव. जमना तट पर नन्द का लाला जब-जब रास रचाए रे, तन मन डोले कान्हा ऐसी बंशी मधुर बजाए रे, सुधबुध खोए खड़ी गोपियां जाने कैसा जादू डाला।। ५/१० करमन की रेखा न्यारी, मैं किसविध लिखू मुरारी। वेश्या ओढे शाल दुशाला, पतिव्रता फिरत उघारी ।। मैं किसविध....ध्रुव. मूरख राजा राज करत है, पंडित फिरत भिखारी।। मैं किसविध... ५/१० अन्तर ढाळ सुहाग मांगण आई अपणै दादोसा रै पास।। दादोसा! द्यो नी सुहाग, आली भोली नै सुहाग, इकन कुंवारी नै सुहाग। ए मां! मैं क्या जाणूं कामण ऐसा गुण लाग्या।। कामण लाग्या ओ सूरजमल, कामण लाग्या ओ गायडमल, नथली इनली बिन्दली स्यूं गुण लाग्या, मैण मेंहदी स्यूं गुण लाग्या। बाई थारो बनड़ो छै नादान, छड़िया खेलैलो चोगान, गोखा बैठ्यो चाबै पान, तोरण आयो करै सिलाम। ए मां! मैं क्या जाणूं कामण ऐसा गुण लाग्या।। सुहाग... ५/११ भजन कर हे! भजन कर हे ! चामड़े री पूतळी भजन कर हे ! ध्रुव. चामड़े रा हाथी घोड़ा, चामड़े रा ऊंट। चामड़े रा बाजा बाजे चारूं ही कूट।। भजन कर हे! 4/१२ रोको काया री चंचळता नै थे समण सती। होसी जोगां पर काबू पायां ही नेड़ी मुगती।। रोको...ध्रुव. काया री परवरती हरदम चालती ही रेवै। संतां ! चंचळता नै रोकै माता काया गुपती।। रोको... परिशिष्ट-३ / ३४७

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