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६/१२
म्हारो घणां मोल रो माणकियो, कुण पापी ले गयो रे। * म्हारा छेल भंवर रो कांगसियो पणिहास्यां ले गई रे, हां रे बैरणियां ले गई रे।। ध्रुव. डोड मोहर रो कांगसियो मैं हटवाड़ा सूं ल्याई रे। दांतै-दांतै मोती जड़िया, अधबिच हीरा जड़िया रे। पाड़ोसण ले गई रे, म्हारा आलीजा भंवर रो कांगसियो...।।
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ज्यां शिर सोवता रे लोय ! उछंगे लीधो हो लाल, राणीये कूकड़ो हो राज। गद-गद कंठे रे भाखै उत्तर मर्म नो। जिण सिर बाल्हो हो लाल, मुकुट विराजतो हो राज। दैवे कीधो रे छोगो राता चर्म नो।।
६/१३
अन्तर ढाळ हो पिउ पंखीड़ा, नारी गुणावली ताम जो, पिंजरियो कर लीधो झरते लोयणे रे लोय। हो घिउ पंखीड़ा ! पभणे परिहरी मुझ आम जो बिछड़वा मति कीधी अगणित जोयणे रे लोय।।
६/१४
संयममय जीवन हो। नैतिकता की सुरसरिता में जन-जन मन पावन हो।। संयममय जीवन हो। ध्रुव. अपने से अपना अनुशासन अणुव्रत की परिभाषा, वर्ण जाति या संप्रदाय से मुक्त धर्म की भाषा। छोटे-छोटे संकल्पों से मानस परिवर्तन हो।। संयम...
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पदम प्रभू नित्य समरिये। ध्रुव. निर्लेप पदम जिसा प्रभू, प्रभु पदम पिछाण। संजम लीन्हो तिण समे, पाया चौथो नाण।। पदम...
६/१६
गुरांजी थे मनै गोडै न राख्यो। मुगती जावा रो भेद न आख्यो।।
३५० / कालूयशोविलास-१