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"मुनि तेजमालजी के संबंध में आचार्यश्री तलसी द्वारा कथित सोरठे१. कछवासी मुनि तेज, मरुधर रो धोरी वृषभ।
गण-गणपति स्यूं हेज, रंग्यो रंग मजीठ ज्यूं।। २. बण्यो रह्यो बेदाग, लीलाधर री लील में।
कालू-कृपा अथाग, आजीवन आंख्यां लखी।। ४१. मुनि घासीरामजी के संबंध में आचार्यश्री तुलसी द्वारा कथित पद्य१. श्रद्धाचार व्रताव्रत आज्ञा अनुकम्पा नव तत्त्व पिछाण।
स्वामीजी री चौपायां पर करी मननपूर्वक मुनि छाण।। २. पद्य हजारां कंठस्थित आगम री झीणी रेस ग्रही।
सन्त बडोड़ा नथमलजी री घासी बाबो बाट वही।। ३. खानदेश रो पहलो यात्री बोलारम तक जा पहुंच्यो। ___श्री कालू री महर लहर जीवन भर गण में रच्यो-पच्यो।। ४. बच्यो अनेक बार खतरां स्यूं एक मात्र श्रद्धा रै पाण।
स्वामीजी रै शासन नै कर मान्यो अपणो जीवन-प्राण।। ४२. क्रीड़ा करता हुआ सिंह बार-बार पीछे मुड़कर देखता है, इसी प्रकार जिस तपस्या में पूर्व-आचरित तपःविधि को दोहराकर आगे बढ़ा जाता है, वह लघुसिंह निक्रीड़ित तप कहलाता है। महासिंह निक्रीड़ित तप की अपेक्षा छोटा होने के कारण इसका नाम लघुसिंह निक्रीड़ित है। इस तपस्या में एक से नौ उपवास तक तपस्या होती है। आगे बढ़ना और वापस उतरना यह इसका क्रम है।
लघुसिंह निक्रीड़ित के चार अभिक्रम हैं। प्रत्येक क्रम में तपस्या के दिन १५४ और पारणे के दिन ३३ होते हैं। इस प्रकार इसमें छह मास और सात दिन का समय लगता है।
प्रथम अभिक्रम में पारणे के दिन विगय (दूध, दही आदि पदार्थ) ली जा सकती है दूसरे अभिक्रम में विगय छोड़नी होती है, तीसरे में निर्लेप-नीवी और चौथे अभिक्रम में पारणे के दिन आयम्बिल किया जाता है। चारों परिपाटियों को पूर्ण करने में कुल दो वर्ष और अट्ठाईस दिन का समय लगता है।
भैक्षवशासन में उपरोक्त तप अनेक साधु-साध्वियों ने किया। उसमें चौथी परिपाटी अनेकों ने प्रारंभ की, पर प्रायः बीच में ही दिवंगत हो गए। इसको परिपूर्ण करने वाली तीन साध्वियां हुईं१. साध्वीश्री मुक्खांजी
वि. सं. १६७७ राजलदेसर में २. साध्वीश्री धन्नांजी
वि. सं. १६८०
२७२ / कालूयशोविलास-१