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आलोचना आप ही करें।'
गणधर गौतम भगवान महावीर के पास पहुंचे। सारी स्थिति की अवगति देकर उन्होंने कहा–‘भंते! क्या गृहस्थ को इतना बड़ा अवधिज्ञान हो सकता है ? ' भगवान ने इस तथ्य का समर्थन करते हुए कहा - 'गौतम ! आनन्द को इतना बड़ा ज्ञान उपलब्ध हुआ है। तुमने उसकी आशातना की है । जाओ, खमतखामणा करके आओ ।'
गणधर गौतम ने उसी समय आनंद उपासक के घर पहुंचकर अपनी भूल के लिए क्षमायाचना की। विशिष्ट ज्ञान - संपदा से संपन्न होने पर भी छद्मस्थ अवस्था में गौतम स्वामी से जो प्रमाद हुआ, उसको भगवान ने प्रमाद ही बताया
है ।
६२. पूज्य कालूगणी द्वारा प्रस्तुत आगम का पाठ - समवाओ १२।२
उवही' सुअ' भत्तपाणे अंजली - पग्गहे त्तिय ।
दायणे' य निकाए अ अब्भुट्ठाणे " त्ति आवरे । । १ । । कितिकम्मस्स य करणे वेयावच्चकरणे इ अ । समोसरणं" संनिसेज्जा" य कहाए अ पबंधणे १२ । । २ । ।
६३. गुरु गोरखनाथजी अपने समय के प्रसिद्ध संत थे। उनके पास एक शिष्य रहता था । शिष्य विनम्र था, पर था बुद्धिहीन । वह अपने गुरु की परिचर्या करता और उनकी कृपादृष्टि पाकर धन्य हो जाता ।
गोरखनाथजी ख्यातिप्राप्त विद्वान थे। उनके पास दूर-दूर के पंडित तत्त्वचर्चा के लिए आते। उनके आवास-स्थल में सदा ज्ञान की गंगा बहती रहती । शिष्य बराबर तत्त्वचर्चा में सम्मिलित होता और अपने गुरु की विद्वत्ता का दर्शन कर आत्मविभोर हो जाता ।
एक दिन शिष्य ने गोरखनाथजी को प्रणाम कर कहा - 'गुरुदेव ! आपकी मंगलमय छत्रछाया में मैं निश्चित हूं। आपका प्रभाव सब वर्ग के लोगों पर है । एक बार जो व्यक्ति यहां पहुंच जाता है, वह आपके प्रति समर्पित हो जाता है 1 आप अपने भक्तों के प्रश्नों का उत्तर देते हैं, समस्या का समाधान देते हैं और देते हैं तत्त्वज्ञान का पोष । आपके वर्चस्व से यह आश्रम भी प्रसिद्ध हो गया है । मेरी भावना है कि मैं सदा-सदा आपके चरणों की उपासना करता रहूं। मेरी इस भावना को सफल करनेवाले आप ही हैं। यदि आपने ऐसा नहीं किया तो मेरी गति क्या होगी ?"
परिशिष्ट-१ / ३०५