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१. मासखमण अट्ठार, पेंताली बावन इकिक । दो मासी दो बार, तक्र - अगार सिंताल दिन ।। २. दिवस एक शत एक, इक शत बंयासी दिवस
आछ अगार सरेख, तात रीत राखी सही । । ३. पंद्रह वर्ष प्रमाण, एकांतर तप सामठो ।
चउत्थ छट्ठ अठ माण, कर-कर कर्म निकंदिया । । ४. डालिम री दिन-रात, त्यूं श्री कालू री सदा । सेवा सझी सुजात, सफल जनम ' रणजी' कर्यो । ।
१०७. घटना सरदारशहर की है। स्थानकवासी मुनि केसरीचन्दजी उसी दिशा में पंचमी समिति जाते थे, जिधर कालूगणी पधारते । एक दिन वे मार्ग में कालूगणी से मिले और बोले- 'आचार्यजी ! आप ठहरें, मुझे आपसे बात करनी है ।' कालूगणी ने कहा - 'रास्ते में क्या बात होगी?' यह कहकर कालूगणी जाने लगे तो वे बोले- 'आप यहां से चले गए तो आपको भीखणजी की आण है, डालचंदजी की आण है और सब आचार्यों की आण है।' कालूगणी ने उनको समझाया कि हमारी स्वीकृति बिना कोई आण कैसे हो सकती है । पर वे नहीं माने।
कालूगणी अपने प्रवास-स्थान पर पधार गए। पीछे से शिवलालजी पटुआ (बीकानेर), उत्तमचंदजी गोठी, नेमीचंदजी बोरड़ (पंच) आदि कुछ व्यक्तियों ने मुनिजी को संबोधित कर कहा - 'महाराज ! आप ऐसे कैसे आण दिरा देते हैं ? यदि ऐसे ही आण होती है तो हम कह देंगे-आप यहां से उठे तो आपको जवाहरलालजी (उनके आचार्य) की आण है ।' मुनिजी ने इस बात को पकड़ लिया और वहीं जमकर बैठ गए। लोगों ने उनको बहुत समझाया, पर वे अपनी बात पर अड़े रहे। स्थिति काफी तनावपूर्ण हो गई। बीकानेर महाराज को जब इस स्थिति की जानकारी मिली तो उन्होंने कई अफसरों को उन्हें समझाने के लिए भेजा । मुनिजी पर उनका कोई असर नहीं हुआ। आखिर बीकानेर से गृहमंत्री शार्दूलसिंहजी उस स्थिति को संभालने आए। उनकी बात भी सहज रूप से स्वीकृत नहीं हुई तो उन्होंने शक्ति से काम लिया। गृहमंत्री ने उनको इस बात से भी सहमत कर लिया कि पहले वे कालूगणी के पास जाकर खमतखामणा करें। फिर वे श्रावक आपके साथ खमतखामणा करेंगे। इस प्रकार तनावपूर्ण स्थिति सामान्य बनी । १०८. रतनी बाई दूगड़ (फतेहपुर) का जन्म बोरावड़ में हुआ। उनकी बड़ी बहन छगनांजी ने सगाई छोड़कर दीक्षा ग्रहण की। रतनी बाई के मन में भी वैराग्य की भावना जागी । पर पिता ने आज्ञा नहीं दी । उनका विवाह फतेहपुर के दूगड़
३१२ / कालूयशोविलास-१