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कथा पूरी हुई। कथाभट्ट अपने घर के लिए रवाना हुआ। साथ में कुछ भक्त भी थे। रास्ते में सब्जी मंडी आ गई । कथाभट्ट सब्जी खरीदने के लिए रुका और बैंगन का मोल-भाव पूछने लगा । भक्तों को यह अटपटा-सा लगा, पर बोलने का साहस नहीं हुआ। एक भक्त से चुप नहीं रहा गया। वह बोला- 'पंडितजी ! अभी तो आप बैंगन की इतनी बुराई कर रहे थे और अब खाने के लिए खरीदने लगे हैं। क्या बात है ?'
पंडित एक बार झिझका, फिर रोष प्रदर्शित करता हुआ बोला - 'मूर्ख ! तू कुछ समझता भी है कि नहीं, वे बैंगन पोथे के थे और ये खाने के हैं । पोथे की सब बातें मानकर बैठ जाएं तो जी भी नहीं सकते।'
५७. एक संपन्न सेठ के घर में गाय, भैंस आदि पशु बहुत थे। गायें-भैंसें अच्छी नस्ल की थीं, अतः वे दूध भी अच्छा देती थीं। दूध, दही, मक्खन किसी पदार्थ की कमी नहीं थी । उस सेठ के पड़ोस में एक ईर्ष्यालु व्यक्ति रहता था । वह सेठ की संपन्नता और पशुधन देखकर मन-ही-मन बहुत जलता था । उसकी जलन कभी-कभी अधिक बढ़ती तो वह कुछ जली-भुनी सुना भी देता था ।
एक दिन वह भोजन करने बैठा । पड़ोस में भैंस का शब्द सुन वह आवेश में आकर बोला- 'सेठ ने कितनी मोटी भैंसें पाल रखी हैं, दिन भर अरड़ाती रहती हैं। ये मर क्यों नहीं जातीं?' उसकी पत्नी ने यह बात सुनी और कहा - 'पड़ोसी की भैंस आपको क्यों अखरती है ? पड़ोस में रहने के कारण हम भी इसका लाभ उठाते हैं। पड़ोसी के घर छाछ बनती है, वह हमें प्रतिदिन मिल जाती है । पर्व-त्यौहार के दिन दूध भी मिल जाता है । हमें तो फायदा ही है ।'
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पति बोला- 'तुम जानती नहीं हो, इन गाय-भैंसों ने मुझे कितना बेचैन बना रखा है? पड़ोसी के घर जब-जब बिलौने का शब्द होता है, मेरे कलेजे में झेरने की ताड़ियों का आघात होता है । मैं अब इसे अधिक समय तक सहन नहीं कर सकता ।'
ईर्ष्यालु व्यक्ति ने एक दिन अवसर देखा और एक भैंस चुरा ली। उसे मकान के नीचे भौंहरे में बांधकर चारा-पानी डाल दिया। भैंस के स्वामी को अप्रत्याशित रूप से भैंस के गायब होने की सूचना मिली । उसने आसपास खोज कराई, पर पता नहीं लगा । पड़ोसी से इस संबंध में पूछा गया तो वह उत्तेजित होकर बोला- 'भट्ठी में जले, आग लगे उसकी भैंस को, जो मुझ पर झूठा इल्जाम लगाता है ।'
कुछ व्यक्ति पड़ोसी के प्रति संदिग्ध थे, पर भैंस को बिना देखे वे उसे चुनौती कैसे दें? खोजी लोगों को बुलाया गया। खोज पड़ोसी के घर तक जाते
२८४ / कालूयशोविलास-१