________________
करता तथा ब्रह्मभोज में सदा सम्मिलित होता रहा हूं। आप मुझसे यह सब क्यों पूछ रहे हैं?"
राजा पुरोहित की नीचता से अवगत हुआ । उसने पुरोहित को बुलाया । वह आने की स्थिति में नहीं था, पर उसे आना पड़ा। राजा ने उसकी भर्त्सना कर उसे देशनिकाला दिया तथा उस गरीब ब्राह्मण को पुरोहित के पद पर प्रतिष्ठित किया । ब्राह्मण 'धर्मे जयः और पापे क्षयः' के अपने सिद्धांत में गहरा आस्थाशील हो गया ।
८५. वि. सं. १६८३ में थली के ओसवाल समाज में एक बहुत बड़ा सामाजिक संघर्ष खड़ा हो गया। संघर्ष का मूल कारण था कुछ व्यक्तियों का पारस्परिक वैमनस्य । किंतु उसे जोड़ा गया मुर्शिदाबाद के इन्द्रचन्दजी दूधोड़िया और इन्द्रचन्दजी नाहटा की विलायत यात्रा से । उन लोगों ने वि. सं. १६४४ में विदेश - यात्रा की । इस यात्रा में खान-पान संबंधी पवित्रता आदि कुछ तथ्यों को संदिग्ध ठहराकर उन्हें जाति- बहिष्कृत कर दिया गया। वे लोग समाज के समक्ष क्षमायाचना करने तथा दण्ड लेने के लिए उद्यत थे, फिर भी कुछ व्यक्तियों की विभेद नीति ने ऐसा नहीं होने दिया ।
कालान्तर में कुछ और व्यक्ति विदेश गए । वे शिक्षित भी थे और संपन्न भी। उन्होंने समाज को प्रभावित किया और ओसवाल समाज दो पक्षों में विभाजित हो गया। एक पक्ष मुर्शिदाबाद का और दूसरा मारवाड़ का । थली के जो ओसवाल विलायत जाने का विरोध करते थे, वे मुर्शिदाबाद के उस धड़े में सम्मिलित थे ।
इस झगड़े को विस्तार मिला चूरू से। वहां के प्रसिद्ध परिवार कोठारी और सुराणा परस्पर वैमनस्य से ग्रसित थे । उन्हीं दिनों सुराणा परिवार के एक युवक का विवाह अजमेर के लोढ़ा परिवार में हुआ। वहां विजयसिंहजी दूधोड़िया ( मुर्शिदाबाद) ने साधर्मिक भाइयों को भोज दिया । विजयसिंहजी विलायत जाने वाले व्यक्तियों में से थे, अतः कुछ बाराती भोजन में सम्मिलित हुए और कुछ नहीं हुए ।
बारात वापस पहुंचे, इससे पहले ही थली प्रदेश में यह संवाद पहुंच गया । कोठारी परिवार को अवसर मिला और उन्होंने सुराणा परिवार के विरोध में एक वातावरण तैयार कर लिया। सुराणा परिवार को इस बात का पता चला तब उसने भी अपने पक्ष को प्रबल बनाने के लिए अभियान शुरू कर दिया। अब कोठारियों के पक्ष की 'श्रीसंघ' तथा सुराणा पक्ष की 'विलायती' नाम से पहचान होने लगी ।
परिशिष्ट-१ / २६६