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का निर्णय ले लिया। प्रातःकाल भगवान को वंदन करने जाते समय उसने मंत्री अभयकुमार को आज्ञा दी - 'रानी चेलना का महल जला देना ।' अभयकुमार ने विस्मित भाव से इस आदेश को सुना और अपने करणीय के बारे में सोचने लगा । श्रेणिक भगवान के समवसरण में पहुंचा। भगवान को वंदन कर वह बैठा ही था कि उसके कानों ने भगवान के शब्द सुने - राजा चेटक की सातों पुत्रियां सतियां हैं। राजा को काटो तो खून नहीं । अपने आदेश की क्रियान्विति से होने वाले अनर्थ की कल्पना से वह कांप उठा। क्योंकि चेलना भी राजा चेटक की पुत्री थी। भगवान स्वयं जिसके सतीत्व का साक्ष्य देते हैं, उसके प्रति संदेह कैसा ? श्रेणिक उलटे पांव लौटा । मार्ग में अभयकुमार मिल गया । श्रेणिक ने आतुरता से पूछा - 'अभय! कहां से आ रहे हो ?' अभयकुमार पिया की आतुरता में अर्थ भरी दृष्टि से अवगाहन करता हुआ बोला- ' आपके आदेश का पालन करके आ रहा हूं।' श्रेणिक अनुताप व्यक्त करते हुए बोला- 'अनर्थ कर दिया, अब क्या होगा ?' हा - 'पिताजी अभयकुमार ने राजा की मानसिक स्थिति को संभालते हुए कहाचिंता न करें, माताजी सुरक्षित हैं।' यह सुनकर श्रेणिक आश्वस्त हुआ । अभयकुमार जैसे पुत्र और मंत्री को पाकर उसने गौरव का अनुभव किया ।
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८४. एक वृद्ध ब्राह्मण प्रतिदिन सभा में जाता । राजा को आशीर्वाद देकर वह बोलता - 'धर्मे जयः पापे क्षयः' । महीनों से यह क्रम चल रहा था, पर राजा ने कभी उसकी ओर ध्यान नहीं दिया । एक दिन राजा की दृष्टि ब्राह्मण पर पड़ी । उसे निकट बुलाकर राजा ने उससे बातचीत की। राजपुरोहित दूर बैठा देख रहा था। राजा मेरा पद छीनकर इसे न दे दे, इस संदेह ने राजपुरोहित को व्यथित कर दिया। वह ब्राह्मण से मिला और बोला - 'महाराज से तुम्हारी क्या बातचीत हुई?' ब्राह्मण ने कहा- 'मैं गरीब आदमी हूं। मैं कुछ जानता नहीं ।' राजपुरोहित बोला- 'देखो, राजा से बात करने का तरीका यह नहीं है । कहीं मुंह से थूक उछल गया तो मृत्यु दण्ड मिलेगा, इसलिए तुम अपने मुंह पर एक कपड़ा बांध कर आया करो ।'
ब्राह्मण से निपटकर पुरोहित राजा के पास पहुंचा और बोला - महाराज ! आप किससे बात करते हैं? वह जाति - बहिष्कृत है । ब्रह्मभोज से अलग है। शराब पीता है और न जाने क्या-क्या करता है। आपको अपने पद की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए ।'
परिशिष्ट-१ / २६७