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व्यापारी ने पुत्र को दुकान पर बुलाकर समझाया-'देखो बेटे! एक ओर घी के टीन रखे हैं तथा दूसरी ओर तंबाकू के हैं। दोनों वस्तुओं के ये दो टीन खुले हैं, बाकी सब बंद हैं। जब तक ये न बिकें, दूसरे टीन मत खोलना।' पुत्र द्वारा मूल्य पूछने पर पिता ने कहा-'दोनों की कीमत समान है।'
व्यापारी पुत्र के भरोसे दुकान छोड़कर गया। पुत्र ने दुकान का निरीक्षण किया। घी और तंबाकू के खुले टीनों को देखकर उसने सोचा-एक भाव की दो चीजें अलग-अलग पड़ी हैं। ये पुराने आदमी कुछ सोचते-समझते ही नहीं हैं। बिना मतलब दो बर्तन रुके पड़े हैं। उसने तंबाकूवाला टीन उठाया, घीवाले टीन में डाला और चम्मच से मिलाकर एकमेक कर दिया।
थोड़ी देर में ग्राहक आया। उसने पूछा-'सेठजी कहां हैं?' पुत्र बोला- 'मैं बैठा हूं, बोलो क्या लेना है?' ग्राहक ने घी की मांग की। उसने तंबाकू मिला हुआ घी लाकर दिखाया। ग्राहक ने पूछा-'यह क्या है?' वह बोला-'घी में तंबाकू मिली हुई है।' ग्राहक ने कहा-'अरे भाई! तुम्हारी अकल कहां चली गई? वह बोला- 'जरा संभलकर बोलो। तुम्हें लेना है तो लो अन्यथा लौट जाओ।'
दूसरे ग्राहक ने तंबाकू की मांग की। उसे भी वही घीमिश्रित तंबाकू दिखाई गई। ग्राहक खाली हाथ लौटा। एक-एक कर बीसों ग्राहक आए और कुछ खरीदे बिना ही लौट गए। दूसरे टीन खोलने की आज्ञा नहीं थी और मिश्रित घी-तंबाकू किसी ने खरीदी नहीं। आखिर वह हताश होकर घर आकर बैठ गया।
दूसरे दिन व्यापारी लौट आया। उसने आय-व्यय का हिसाब मांगा तो पुत्र बोला-'आय कहां से हो? आपने सब ग्राहकों को सिर पर चढ़ा रखा है। मेरा तो दिमाग खराब कर दिया आपके ग्राहकों ने।' व्यापारी ने पूछा-'आखिर हुआ क्या?' पुत्र ने अपनी करामात की सारी कहानी सुनाई। सारी स्थिति समझकर व्यापारी बोला-'अरे बेवकूफ! व्यापार ऐसे होता है क्या? घी और तंबाकू का भाव एक है, पर तभी तक है, जब तक वे अलग-अलग हों। साथ मिलाकर तुमने उनको धूल बना दिया। जाओ, इसे कूड़ेघर पर डालकर आओ।'
व्यापारी ने पुनः अपने ग्राहकों को याद किया, पर उनका मूड बिगड़ चुका था। काफी परिश्रम के बाद ग्राहक निकट आए और दुकान अच्छी प्रकार चलने लगी।
इस उदाहरण के माध्यम से स्वामीजी ने यह समझाया है कि घी और तंबाकू के मिश्रण की भांति अध्यात्म-धर्म और लोक-धर्म का मिश्रण भी अहितकर हो जाता है।
परिशिष्ट-१ / ३०१