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होती है।
६२. कौरवों और पाण्डवों के मध्य हुए घमासान युद्ध महाभारत की समाप्ति के बाद पाण्डवों का मन ग्लानि से भर गया। अपने ही स्वजनों को अपने ही शस्त्रास्त्रों से प्रतिहत करने के बाद जब वे युद्धभूमि से लौटे तो उनका अंतःकरण विचलित हो गया। युद्ध में संचित पाप का शोधन करने के लिए उन्होंने तीर्थस्नान करने का निर्णय लिया। अपने निर्णय पर श्रीकृष्ण की सहमति पाकर वे उसकी तैयारी में लग गए। यात्रा से पूर्व जब वे श्रीकृष्ण से विदा लेने गए तो वे बोले- 'तुम तीर्थयात्रा पर जा रहे हो। विशेष तीर्थों पर तुम जलस्नान भी करोगे। क्या- मेरी इस तुम्बी को भी स्नान करा लाओगे?'
'क्यों नहीं, हम एक बार करेंगे तो इसे तीन बार कराएंगे।' पाण्डवों ने पुलकित होकर उत्तर दिया। वे तुम्बी को साथ लेकर गए और महीनों तक तीर्थयात्रा करते रहे। जहां-जहां तीर्थभूत नदियों में उन्होंने स्नान किया, वे तुम्बी को तीन-तीन बार स्नान कराना नहीं भूले।
तीर्थयात्रा पूरी कर पाण्डव श्रीकृष्ण के पास पहुंचे। कृष्णजी ने पूछा-'क्यों भाई! स्नान कर आए?' पाण्डवों की सविनय स्वीकृति पाकर वे बोले-'मेरी तुम्बी का क्या हाल है?' पाण्डवों ने तुम्बी श्रीकृष्ण को सौंपते हुए कहा-'यह लीजिए आपकी तुम्बी।' श्रीकृष्ण ने तुम्बी का एक छोटा-सा टुकड़ा तोड़कर जीभ पर रखा और कडुवाए मुंह की भंगिमा प्रदर्शित करते हुए बोले-‘लगता है कि तुम मेरी तुम्बी को स्नान कराना भूल गए। अन्यथा इतने तीर्थों का अवगाहन करके भी यह मीठी क्यों नहीं हुई?' पाण्डव कुछ मुस्कुराए और बोले-'जनार्दन! आप भी आज कैसी बात कर रहे हैं? यह कड़वी तुम्बी जलस्नान से मीठी कैसे हो सकती
___'फिर तुम्हारी आत्मा जलस्नान से पवित्र कैसे हो सकती है?' श्रीकृष्ण के इस प्रतिप्रश्न ने पाण्डवों को गंभीर बना दिया। वे अपनी गंभीरता को तोड़कर बोले-'यदि तीर्थों का जल पवित्र नहीं होता है और उसमें स्नान करने से पापों का शोधन नहीं होता है तो आपने हमको तीर्थयात्रा के लिए जाने से मना क्यों नहीं किया?' श्रीकृष्ण का उत्तर था-'उस समय तुम्हारा मानस इतना विक्षिप्त था कि मैं कुछ भी कहता, वह तुम्हारी समझ में नहीं आता।'
'फिर हमारी शुद्धि कैसे होगी?' पाण्डवों द्वारा किए गए इस प्रतिवेदन पर श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया
२८६ / कालूयशोविलास-१