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४. इतर दर्शणी कर्षणी, नय- वणिज्य- अनभिज्ञ । विज्ञ वणिग जिनदर्शणी, नय - दुर्णय-विपणि ।।
एकांतवादी दार्शनिक की तुलना किसान से की जा सकती है। नय - सापेक्ष दृष्टि वाले दार्शनिकों की तुलना चतुर व्यापारी से की जा सकती है।
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एकांतवादी दार्शनिक सत्य को अपने मत की ओर खींचने का प्रयत्न करता । नयज्ञ दार्शनिक नय और दुर्नय का भेद समझता है, इसलिए वह सत्य को अपने विचार की ओर खींचना नहीं चाहता, किन्तु यथार्थ और अयथार्थ का विवेचन कर सत्य को जनता के सामने प्रस्तुत करता है ।
जैसे कुशल वणिक विक्रेय वस्तु के प्रति आग्रह नहीं रखता । वह उत्कृष्ट और साधारण माल का पृथक्करण कर उसका मूल्यांकन करता है। जो उत्कृष्ट और जनता के लिए उपयोगी होता है, उसे जनता तक पहुंचाता है ।
५. वस्तु-अंश-ग्राही विशद, अंशेतर - सापेक्ष । नय - नयज्ञ निर्दिष्ट है, नयाभास निरपेक्ष ।।
वस्तु के अनन्त अंश-धर्म होते हैं । उनमें से एक अंश का ग्रहण करने वाला नय है । वह वस्तु के शेष अंश - सापेक्ष होता है-उसका विरोध, प्रतिकार या निरसन नहीं करता, नयज्ञ मनीषियों ने ऐसा बतलाया है ।
जो दृष्टिकोण एक अंश का ग्रहण करे और शेष अंशों का निरसन करे, उसका नाम नयाभास है ।
६. भव्य रूप भावित त्रयी, प्रमा-प्रमातृ- प्रमेय ।
अनेकांत मत कांन्त मम, हृदि नितान्त आधेय । ।
अनेकान्त के द्वारा प्रमाण, प्रमाता और प्रमेय की समीचीन व्यवस्था होती है, इसलिए अनेकांत का मत मेरे लिए कमनीय है, हृदय में नितांत रूप से आधेयधारण करने योग्य है 1
७. स्मृति - गोचर सौ वर करी, गुरु- गरिमा - आभास । कालूयशोविलास रो, अब दूजो उल्लास ।।
पूज्य गुरुदेव श्री कालूगणी की गुरुता के आलोक को सौ बार स्मृति का विषय बनाता हूं और कालूयशोविलास के दूसरे उल्लास का प्रारंभ करता हूं ।
उल्लास : द्वितीय / ११५