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भावना जाग्रत हुई, जो उत्तरोत्तर विकसित होती रही ।
१६. 'फसै नहिं फांकड़ी' का अर्थ है कोई उपाय नहीं होना । जहां कोई उपाय कार्यकर नहीं होता है, वहां भी वणिक लोग अपने चातुर्य से सफल हो जाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कहानी है
एक वणिक बहुत लोभी था । वह जीवनभर मोह-माया के चक्कर में रहा । उसने न कभी सत्संग किया और न धर्माचरण । जैसे-तैसे अर्थार्जन और उसकी सुरक्षा में उसने अपना जीवन पूरा कर दिया। आयुष्य की पूर्णता पर यमराज ने उसको धर्मराज के सामने उपस्थित किया । धर्मराज ने उसके पिछले जीवन से संबंधित बही-खाते देखे। वहां धर्म के कोष्ठकों में शून्य अंकित थे । धर्मराज ने उसको लोभ, मोह, धोखाधड़ी आदि दुष्प्रवृत्तियों का फल भोगने के लिए यातनापूर्ण स्थान (नरक) में ले जाने का आदेश दिया । यह आदेश सुनते ही वणिक कांप उठा। अब वह नारकीय यातना से बचने का उपाय सोचने लगा ।
उसने देखा - उसके नाम का खाता पास में ही पड़ा है। उसमें जीवन के समग्र लेखे-जोखे के बाद लिखा हुआ है - 'आयुः गतम्' । यह पढ़ते ही उसकी आंखों में चमक आ गई। उसने सोचा- 'गतम्' में एक फांकड़ी फंसाकर मैं अपना काम बना सकता हूं। इस चिन्तन के साथ ही उसने धर्मराज की आंख बचाकर डोट पेन जैसे किसी साधन से गकार के नीचे एक छोटी-सी रेखा खींच दी । 'गतम्' ‘शतम्' में बदल गया।
अब वह धर्मराज को सम्बोधित कर बोला- 'आप तो न्यायप्रिय हैं, आपके सामने भी इतनी पोल? क्या आपके कर्मकर अनपढ़ हैं? कृपा कर आप मेरे खाते की जांच कीजिए। मैं इतने समय तक अपने परिवार की व्यवस्था में व्यस्त रहा । अब मुझे निश्चिंत होकर धर्माराधना में प्रवृत्त होना था । धर्म-कर्म करने का समय आया तो मुझे वहां से उठा लिया गया। क्या मेरा आयुष्य पूरा हो गया है?'
कहा जाता है- धर्मराज ने खाता देखा । 'आयुः शतम्' देखकर उसने यमराज को उपालम्भ दिया और उस वणिक को पुनः धरती पर जाने के लिए मुक्त कर दिया । धर्मराज के राज्य में एक फांकड़ी फंसाकर वणिक एक बार नारकीय यातना से मुक्त हो गया, पर कर्मों की संसद में ऐसा कुछ भी घटित नहीं हो सकता । २०. श्रावण कृष्णा एकम का दिन अयन - वर्षार्ध (उत्तरायन और दक्षिणायन), वर्ष, युग, अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी और कालचक्र का प्रथम दिन है । डालगणी ने कालूगणी के लिए युवाचार्य का नियुक्तिपत्र इसी दिन लिखा । इस दृष्टि से इस दिन का महत्त्व और बढ़ गया ।
२६२ / कालूयशोविलास-१