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थोड़ी दूर गाड़ी चली और बर्तनों में फिर खड़बड़ शुरू हो गई। वर बोला-'गाड़ीवान! तुम बर्तनों को मौन करवा दो अन्यथा मुझ जैसा बुरा कोई नहीं होगा।' गाड़ीवान ने विनम्रता से कहा- 'जंवाई बाबू! इनको कैसे समझाऊं?'
जामाता हाथ में डंडा लेकर उठा और बोला-'देखता हूं साले मानते हैं या नहीं? मेरे सामने कोई आदमी भी खड़बड़ करे तो मैं उसका सिर फोड़ देता हूं। इनकी क्या मजाल, जो अपनी खड़बड़ाहट नहीं छोड़ते।' इन शब्दों को दोहराता हुआ वह गाड़ी पर चढ़ा और डंडे के प्रहार से सब बर्तनों को तोड़कर ढेर कर दिया।
लड़की ने यह सब देखा और उसकी अक्ल ठिकाने आ गई। घर पहुंचकर उसके पति ने कहा-'देखो, यह घर तुम्हारा है। सुख से रहो और घर को संभालो। तुम्हें कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है। पर एक बात का ध्यान रखना। मेरी प्रकृति बहुत बुरी है। यदि तुमने ऐसा-वैसा कुछ कर दिया तो फिर खैरियत नहीं है। अन्य सब बातों के साथ उसने यह भी कहा-'अपने घर में कोई अतिथि आए तो उसको पूरा आतिथ्य दो, पर उसको घी या तेल मुझे पूछकर परोसना।' वधू बोली-'अतिथि के सामने मैं आपसे कैसे पूडूंगी?' पति ने परामर्श दिया- 'यदि मैं बायीं आंख से संकेत करूं तो तेल परोसना और दायीं से करूं तो घी।' पत्नी ने अपने पति के हर संकेत और निर्देश को सही रूप में समझा और क्रियान्वित किया। उनका घर एक प्रकार से स्वर्ग बन गया।
कुछ समय बाद लड़की का पिता अपनी पुत्री के हालात जानने के लिए आया। पति ने सोचा-आज पिताजी को दिखाना है कि उनकी पुत्री को कैसे पढ़ा लिया है। लड़की ने अपने पिता के लिए खिचड़ी तैयार की। भोजन परोसने से पहले उसने पति की ओर देखा। पति ने बायीं (डाई) आंख का संकेत किया। लड़की का कलेजा बैठ गया। पिताजी को तेल परोसे, यह उसे उचित नहीं लगा। पति की इच्छा के विरुद्ध घी परोस दे तो मिट्टी के बर्तनों जैसी हालत उसकी हो जाए।
आज्ञा का अतिक्रमण करने से तो पूछ लेना अच्छा है, यह सोच वह धीरे से बोली- 'बाबै स्यूं पिण डाई?' पिता पास में बैठा था। उसने अपने जामाता की ओर देखा। दोनों रहस्य समझ गए। जामाता ने दायीं आंख से संकेत कर अपने ससुरजी को घी-खिचड़ी का भोजन करवाया। श्रेष्ठी अपने जामाता के बुद्धि-कौशल से बहुत प्रभावित हुआ। . १८. चूरू-निवासी रायचन्दजी सुराणा के साथ पं. घनश्यामजी का अच्छा संबंध था। उनकी प्रेरणा से पंडितजी के मन में सन्तों को अध्ययन कराने की
परिशिष्ट-१ / २६१