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५. वदै बांठियाजी तदा, सूत्र भगवती थाम।
सहसा सूयगडांग रो, काढ़ो पाठ प्रकाम।। ६. श्रीमुख स्यूं शासनमणी, शीघ्र तदा चित शांत।
एकादशमाध्ययन' रो, वर्णवियो वृत्तांत ।। ७. पेखो प्रतिवादी कहै, सूत्रपाठ प्रत्यक्ष।
एकांतिक प्रतिषेध है, आर्हतमत-प्रतिपक्ष ।। ८. समुचित उत्तर स्वाम रो, वर्तमान में तंत।
प्रश्नोत्तर के रूप में, हां ना कहै न संत।। ६. वित्तिच्छेय करेंति ते, आ किरिया है अत्र।
वर्तमान री बोधिका, आलोचो एकत्र।।
२ तेरापथ-नायक! दान दया स्थिर थापो। अजि यूं क्यूं नाहक वीर-वचन उत्थापो।।
१०. तदा विपक्षी निजमत-पक्षी बोलै जोश भराणा।
जी! वर्तमान रो अर्थ मिलै नहिं पेखो सूत्र पुराणा।। ११. प्रगट रूप जिनराज भणै कोइ ‘अस्ति नास्ति' मत गावो।
जी! वर्तमान अनुमान बहानै, भोळां नै बहकावो।। १२. सूत्रकृतांग सूत्र री पड़तां करो सैकड़ां भेळी।
जी! एकण मांही देखण न मिलै उक्त अर्थ री शैली।। १३. तब गणिराज पायचंद सूरी-कृत टब्बो दिखलायो।
अरु शीलांकाचार्य आर्य-कृत वृत्ति-वृत्त संभलायो।।
भावुक गुणभीना वीर-वचन अनुचालो। मत-पक्षे पीना झूठी राह न झालो ।।
१. सूयगडो श्रुतस्कंध १, अ ११, श्लोक १६-२१ २. लय : धीठा में धीठ मैं कहा बिगाड़ा तेरा ३. पायचंद सूरिकृत टब्बो
वर्तमान काले पामिवानो उपाय, तेहनो विघन करै ते अविवेकी। ४. सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र २०५
उ.२, ढा.१४ / १६३