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२३. ज्येष्ठ महीनो हो ऋतु गरमी नो, म्हारा राज!
मध्यम सीनो हो अब हठभीनो। म्हारा राज! लू री झाळां हो अति विकराळां, म्हारा राज!
वहि-ज्वालां हो ज्यूं चोफाळां ।। म्हारा राज! २४. भू ज्यूं भट्टी हो तरणी तापै, म्हारा राज! रेणू कट्ठी हो तनु संतापै। म्हारा राज! अजिन रु अट्ठी हो मट्टी व्यापै, म्हारा राज!
अति दुरघट्टी हो घट्टी मापै।। म्हारा राज! २५. स्वेद-निझरणां हो रूं-रूं झारै, म्हारा राज!
चीवर चरणां हो लुह-लुह हारै। म्हारा राज! अंगे उघडै हो फुणसी-फोड़ा, म्हारा राज!
भुं पे उधड़े हो ज्यूं भंफोड़ा।। म्हारा राज! २६. जैन मुनी रो हो मारग झीणो, म्हारा राज!
फासू पाणी हो धोवण पीणो। म्हारा राज! न्हावण-धावण हो अंश न करणो, म्हारा राज!
आत्म-तपावण हो दिल संवरणो।। म्हारा राज! २७. मलिन दुकूला हो कड़-कड़ बोले, म्हारा राज!
जंघा चूला हो छड़-छड़ छोले। म्हारा राज! अति प्रतिकूला हो पवन झकोले, म्हारा राज!
ज्यूं कोइ शूलां हो अंग खबोलै ।। म्हारा राज! २८. कोमल काया हो पासे माया, म्हारा राज!
जननी जाया हो बा'र न आया। म्हारा राज! भोंहर घर के हो पौढ़े खाटां, म्हारा राज!
जल स्यूं छरकै हो खस-खस-टाटां।। म्हारा राज! २६. मंदिर मूंदी हो खोलै पंखा, म्हारा राज!
कर धर तूंदी हो सोत निशंका। म्हारा राज! विद्युत-योगे हो शीतल-भावै, म्हारा राज!
स्नानालय में हो मल-मल न्हावै।। म्हारा राज! ३०. हृदय उम्हावै हो बरफ जमावै, म्हारा राज!
खुश हो खावै हो दिल बहलावै। म्हारा राज! जी घबरावै हो सेंट छंटावे, म्हारा राज! ज्यादा चावै हो शिमलै. जावै।। म्हारा राज!
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उ.३, ढा.१४ / २३७