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६. करी वर्जना सूत्र में, तो पिण पंथी संत।
प्रगट रूप अवहेलना करै हंत! हा हंत! ७. बेठ्यो ही बोल्यो तदा, श्रावक गोरूलाल ।
तेरापंथी तो कहै नहिं उत्सूत्र सवाल।। ८. पूज्य जवाहिरलालजी, जम्पै आणी जोश।
जो देखावै पाठ में, तो पन्थी निर्दोष ।। ६. प्रस्तुत हैं हम देखने, कहो चलें किस बार?
संतां रा गोरू कहै, खुला हमेशा द्वार।।
'सुणो-सुणो रे सुजाण! चूरू री चरचा। जिणमें पाई गणराण, अनोखी अरचा।।
१०. सायंकाले पांगऱ्या रे, पंचमि समिति पूज।
बाहुड़ता बिच में खड्या रे, दो मुनि मग अवरूझ।। ११. कुण है कालूरामजी रे, तेरापन्थ-अधीश?
कहै शिष्य छायूँ रह्यो रे? भानू भळकै शीष। १२. करणी म्हारै बातड़ी रे, पथ में कुण-सो काम?
कालू श्रमण-शिरोमणी रे, समवसऱ्या निज धाम।। १३. कहै सन्त-सन्तां! कहो रे, के करणी है बात?
नहीं नहीं थांस्यूं नहीं रे, आया जिण दिश जात।। १४. दूजै दिन व्याख्यान में रे, ज्यांरे तखत विराज।
प्रारंभी गुरु देशना रे, त्रिगड़े ज्यूं जिनराज।। १५. शोभै साधू-साधवी रे, त्यूं श्रावक-समुदाय। ___अदृश देवी-देवता रे, है तो इचरज नाय।। १६. लगभग प्रवचन-प्रांत में रे, ले प्रतिवादी-ख्यात।
नाम गणेशीलालजी रे, साधु-मंडली साथ।। १७. आया बीकानेर का रे, श्रावक साथीवाल।
रोम-रोम जोमे भर्या रे, गोरूलाल दलाल।।
१. लय : तूं तो आज्या है नींद २. स्थानकवासी मुनि ३. मुनि हेमराजजी आदि
२०८ / कालूयशोविलास-१