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२६. श्री कालूजी री कहणी, त्यूं करणी है बिन महणी जी।
नहिं बैंगण पोथैवाळा', आरोगण हेत निराळा जी।।
३०. शुभ यश-पडह-निनाद, साद प्रसर्यो भारी,
गणिवर गुण-संवाद, वदै बहु नर-नारी। नर-नारी, सद्गुरु गुरुता री, महिमा गावै दुविधा टारी, दसवीं ढाळ विशाल, सुणो सब हितकारी।।
ढाळः ११.
दोहा १. मोटा-मोटा मानवी, पूज्य-पदाम्बुज भेट।
धन्य-धन्य जीवन गिण्यो, भव-संचित अघ मेट।। २. महात्मा गांधी तदा, भीवाणी निज काज
आया, तब निसुणी अठै तेरापथ-अधिराज।। ३. निज इच्छा परगट करी, करणो है संपर्क।
(पर) राजनीति कारण कृते, बिच में रह्यो वितर्क।।
परम-गुरु पुनवानी, पुनवानी जन-मन मानी, आ तो मुलक-मुलक महकाय, परम गुरु पुनवानी। आ तो झुक-झुक झोला खाय, परम गुरु पुनवानी।।
४. पावस में थ्यावस मिल्यो, है धर्म-वृष्टि अनपार, परम... ।
भीवाणी में लग रही, ल्यो घर-घर अजब बहार, परम...।। ५. प्रथम-प्रथम चौमास ओ, पीढ़यां स्यूं करत अडीक।
सुरतरु फळग्यो आंगणे, टळि अंतराय री लीक।। ६. सावण सरिता धरम री, नित प्रवही परम-पुनीत।
जैनेतर हो जैन हो, न्हा-न्हा मेटी सब भीत।। ७. भर परवां रो भादवो, मझली रुत रो आसोज।
एकमेक-सो हो रह्यो, धार्मिक जनता रो जोश।।
१. देखें प. १ सं. ५८ २. लय : धन-धन भिक्षु स्वाम ३. लय : बगीची निम्बुवां की
उ.२, ढा.१०, ११ / १५१