Book Title: Kalpasutra Author(s): Jinendrasuri Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र ॥३ ॥ 222866666.ee सस्सिरीए चउद्दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा समाणी हठ्ठतु-चित्त-माणंदिआ, पीइमणा, परम-सोमणसिया, हरिस-वस-विसप्पमाण-हिअया, धारा-हय-कर्यब-पुप्फगं पिव समुस्ससिअ-रोमकूवा, सुमिणुग्गहं करेइ । सुमिणुग्गहं करित्ता सयणिज्जाओ अब्भुढेइ, अब्भुठ्ठित्ता अतुरिअ-मचवल-मसंभंताए अविलंबियाए रायहंस-सरिसीए गईए जेणेव उसभदत्ते माहणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उसभदत्तं माहणं जएणं विजएणं बद्धावेइ, वद्धावित्ता भद्दासण-वरगया आसत्था वीसत्था सुहासण-वरगया | करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी ॥ सू. ५|| | एवं खलु अहं देवाणु प्पिया ! अज्ज सयणिज्जंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी इमे एयारूवे उराले जाव सस्सिरीए चउद्दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा । तं जहाः-गय जाव सिहिं च ॥१|| सू. ६॥ एएसिं णं देवाणुप्पिआ ! उरालाणं जाव चउद्दसण्हं महासुमिणाणं के मण्णे कल्लाणे फलवित्ति-विसेसे भविस्सइ ? तए णं से उसभदत्ते माहणे देवाणंदाए माहणीए अंतिए एअमळू सुच्चा निसम्म हळुतुछ जाव हिअए धाराहय - कयंबपुप्फगं पिव समुस्ससिय - रोमकुवे: e eeeeeeee For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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