Book Title: Jivan ki Khushhali ka Raj
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 19
________________ का कारण बनता है। लोभ तो पाप का बाप है। भगवान् महावीर ने कहा है'क्रोध प्रीति का नाश करता है, मान विनय का नाश करता है, माया मित्रता का और लोभ सब कुछ नाश कर देता है' इसलिए संतोष रूपी धन बटोर लें। विधाता और भाग्य ने जो दिया है, अच्छा दिया है। श्रेष्ठ दिया है अतः सुखी जीवन के लिए इससे बढ़कर दूसरा धन और क्या हो सकता है? तरुवर बनें, सरोवर बनें जीवन में दूसरों के काम आना – यह भी सुखी जीवन का एक मंत्र है। इसमें हमारे मन को तो सुकून मिलता ही है, साथ ही साथ मानवता के कल्याण में भी हम सहयोगी बनते हैं। आप जिंदगी में दूसरों के काम आने की कोशिश करें। आप देखते हैं, वृक्ष फल स्वयं नहीं खाते और वे दूसरों के लिये उन्हें गिरा देते हैं । सरोवर दूसरों की प्यास बुझाने को सदा तत्पर रहते हैं। हमारी महानता इसी में है कि हम दूसरों के काम आ सकें। आप अपने घर में ऐसा पेड़ लगाएँ जिसकी छाया पड़ौसी के घर तक जाए। पड़ौसी को अपने व्यवहार से सुकून दें। स्वयं की सुविधा, स्वयं की भलाई तथा खुद के विकास की संभावनाएँ तो सभी ढूंढते हैं लेकिन महान वे हैं जो औरों के लिए स्वयं को समर्पित कर देते हैं। हृदय में करुणा, मैत्री, प्रार्थना हो तथा जीव-जन्तुओं के प्रति भी दया-भाव हो। जीवन में कोई आपके लिए कितना भी बुरा क्यों न करे, लेकिन आप उसके प्रति उदारता रखें और उसकी विपत्ति में काम आएँ। अगर हमारे पास अधिक धन है तो उसे सेवाकार्य में खर्च करें। जीवन में ऐसे कुछ नेक कार्य करें कि ऊपर जायें तो ऊपर वाले के सामने हमारा चेहरा दिखाने लायक अवश्य हो। एक दफा अकबर ने बीरबल से पूछा-'मेरी हथेली में बाल क्यों नहीं हैं?' अजीब सा प्रश्न था, लेकिन पूछा भी तो बीरबल से था। तुरंत उत्तर मिला, 'जहाँपनाह, आप अपने हाथों से निरंतर दान करते हैं, इसीलिए आपकी हथेलियों के बाल घिस गए हैं।''बात तो ठीक है, लेकिन बीरबल जो देते नहीं हैं उनकी हथेलियों में बाल भी क्यों नहीं होते?', सम्राट ने अगला सवाल किया।, 'बादशाह! वे लोग लेते हैं इसलिए लेते-लेते उनके बाल घिस जाते हैं', बीरबल ने उत्तर दिया। अकबर ने कहा, 'यह भी ठीक है, लेकिन जो न देते हैं और न लेते हैं उनकी हथेलियों में बाल क्यों नहीं होते?' बीरबल ने जो जवाब 18 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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