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कि आप दिखने में कैसे दिखते हैं, लेकिन अपनी सोच को सुंदर बनाना अवश्य ही आपके हाथ में है। ऊंचे कुल में, धनी या निर्धन घर में पैदा होना आपके हाथ में नहीं है । उसका शिकवा न करें, आपके हाथ में है आपकी सोच का स्तर। जो आपके हाथ में है उसे जरूर सुधारें। जैसे घर के आंगन में हम हर रोज़ कचरा निकालते हैं, पौंछा लगाते हैं वैसे ही रोज अपने दिमाग में झाडू ज़रूर निकाले लें, कोई दुर्विचार का कचरा आ गया है तो उसे बाहर निकाल दें। अपने चिंतन को स्व सुख के बजाय सर्वसुख से जोड़ने की कोशिश करें। जब भी कामना करें स्वसुख के बजाय सर्वसुख की कामना करें। जब आप सबके कल्याण की सोचते हैं तो अखिल मानवता के कल्याण की बात होती है और जब केवल अपने कल्याण की सोचते हैं तो यह स्वार्थ की बात होती है। यह खुदगर्जी की बात है कि व्यक्ति केवल अपने तक कल्याण भरी सोच को सीमित रखता है ।
नकारात्मक सोच जीवन का ज़हर है। नकारात्मक नज़रिये के लोग सदैव औरों का नुकसान करके प्रसन्न होते हैं । आप देखते होंगे, रात को आपने स्कूटर घर के बाहर रखा और सुबह गये तो देखा स्कूटर की सीट कटी हुई है। रात को किसी ने ब्लेड चला दी। उधर स्कूटर स्टार्ट करो तो हॉर्न बजना शुरू हो जाता है, पता लगता है किसी ने हॉर्न का स्वीच तोड़ दिया और हॉर्न बंद होने का नाम नहीं ले रहा। रात को आपने मोटर साइकिल में पेट्रोल भरवाया था, सुबह कहीं जाना था, सुबह गये मोटरसाइकिल स्टार्ट की, तो पता लगा कि पेट्रोल की टंकी खाली है। किसी ने टंकी की नलकी खोल दी है । पता है ये सब काम कौन करते हैं, घटिया सोच के वे लोग जिनके पास करने को कुछ नहीं, वे फुरसतिया लोग दिनभर हा-हा - ही - ही - ही करते रहते हैं ।
मैं एक महिला को जानता हूं जो अपनी बहू के व्यवहार से कभी खुश नहीं थी । अगर खाना स्वादिष्ट बनाये और कोई तारीफ़ करे तो मसालों को श्रेय देगी। मैंने अभी अमुक मसाले मंगवाये इसलिए सब्जी स्वादिष्ट हुई। बच्चों की प्रशंसा में दो शब्द कहें तो वह महिला सीधे कहती है ये पोते-पोतियाँ तो बिल्कुल मुझ पर गए हैं। यदि कोई ग़लती हो बच्चों से तो कहेगी बहू से यही सब सीख रहे हैं। यानी सदा अपनी सोच का ग़लत उपयोग ।
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