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उसे आँख से थोड़ा दूर रखना होता है। अधिक पास रखने से आँख खराब हो सकती है, वैसे ही बच्चे का भविष्य संवारना है तो उसे भी आँख से दूर रखने की हिम्मत जुटाइये। जब वह आँख से दूर होगा तो आत्मनिर्भर होगा।
मैंने देखा है कि बच्चे घर में माँ से कहते हैं मुझे यह सब्जी नहीं सुहाती, मुझे यह अच्छा नहीं लगता, वह अच्छा नहीं लगता, आज ये बनाओ। माँ खाने का आग्रह करती है और बच्चे ना-नुकुर करते रहते हैं पर वही बच्चे जब हॉस्टल में चले जाते हैं तब उसी सब्जी के लिए लाइन में लगना पड़ता है, गर्म पानी के लिए लाइन में खड़े होना पड़ता है, जैसा खाना मिले खाने के लिए मजबूर होते हैं। तब वे आत्मनिर्भर होना शुरू होते हैं। जब उन्हें ग्राउण्ड मिलता है तब वे अपने विकास के लिए समर्थ होते है। हाँ, अपने बच्चों को व्यावहारिक शिक्षा भी दें। अकेले ही सब्जी खरीदने न जाएं । अपने बच्चे को भी साथ ले जाएं ताकि वह समझ सके कि कौनसे फल या सब्जी काम के हैं या अच्छे हैं, ताकि बड़े होने पर आपके बच्चे औरों के सामने केवल यह न कहते रहें कि हमारे पिताजी बहुत अच्छी कच्ची-कच्ची भिंडी लाते थे, या क्या मटर लाते थे छांट-छांटकर, अपितु वे स्वयं भी उतनी ही अच्छी सब्जियां ला सकें। अपने बच्चे को जीवन की पाठशाला की डिग्रियां भी जरूर दीजिए। जब वह इस प्रकार की छोटी-छोटी चीजों के साथ वाकिफ होता रहेगा तो शिक्षा की डिग्रियों के साथ जीवन की व्यावहारिक पाठशाला की डिग्रियां भी अर्जित कर लेगा।
बच्चों और अभिभावकों के बीच संबंधों की चर्चा के बाद हम पतिपत्नी के रिश्ते पर बात करते हैं। यह एक नाजुक रिश्ता है। जब पति-पत्नी के बीच तालमेल नहीं होता है तो अग्नि की साक्षी में लिए गए फेरे मुश्किल में पड़ जाते हैं और घर घुटन, तनाव, अवसाद से घिरकर नरक बन जाता है। जानें, उनके बीच कैसा तालमेल हो, कैसे निभाएं यह रिश्ता? चयन जीवन-साथी का
मेरा पहला संकेत है कि जीवन साथी बहुत सावधानी से चुनें। आपके अधिकांश सुख और दुःख केवल एक चयन से जुड़े हुए हैं। केवल रंग-रूप देखकर जीवन-साथी न चुन लें। गोरा रंग केवल दो दिन अच्छा लगता है और ज्यादा पैसा दो महीने अच्छा लगता है, लेकिन जीवन न तो केवल रंग के
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