Book Title: Jivan ki Khushhali ka Raj
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

View full book text
Previous | Next

Page 136
________________ भाई ?' उसने कहा, 'मेरी ब्रीफकेस पानी में गिर गई है, आप उसे निकाल दें।' जल देवता पानी में गये और सुंदर-सी चमड़े की ब्रीफकेस निकालकर ले आए और पूछा 'क्या यही तुम्हारा ब्रीफकेस है ?''नहीं, यह मेरी ब्रीफकेस नहीं है, वह ईमानदार था। जल देवता फिर पानी में गए और इस बार एक सुंदर और मजबूत ब्रीफकेस लेकर आए जिसमें रुपये भी भरे थे। ब्रीफकेस खोलकर दिखाते हुए पूछा – क्या यह उसकी ब्रीफकेस है? उसने कहा'नहीं-नहीं यह भी मेरी ब्रीफकेस नहीं है, मेरी ब्रीफकेस तो रेग्जीन की है, जिसके भीतर रुपये नहीं, मेरे कागज हैं।' जल देवता भीतर गए और उसकी वही रेग्जीन की ब्रीफकेस लेकर आ गए और पूछा, 'क्या यह है?' उसने तपाक से कहा, 'हाँ-हाँ यही है।' जल-देवता उसकी ईमानदारी से इतने खुश हुए कि उसकी वास्तविक ब्रीफकेस के साथ वे अन्य दोनों ब्रीफकेस भी दे दी। घर आकर उसने अपनी पत्नी को सारी बातें बताई। पत्नी खुश हो गई कि कितने अच्छे जल देवता है। उसकी नीयत डोल गई। उसने कहा 'चलो मैं भी चलूंगी नदी पर।' उसने सोचा सोने की चूड़ी डालकर हीरे की ले आऊंगी। ___ पति-पत्नी दोनों नदी पर पहुंचे। बिना पीठ वाली कुर्सी पर बैठे। पहले तो ब्रीफकेस गिरी थी इस बार तो पत्नी ही गिर गई। पति दुःखी होकर रोने लगा, पुकारने लगा कि कोई उसकी पत्नी को बचा ले। तभी जल के देवता प्रकट हुए और पूछा 'वत्स! क्या हुआ ?' उसने कहा, पत्नी के कहने पर लोभवश मैं फिर आ गया था, लेकिन इस बार तो मेरी पत्नी ही गिर गई। जल देवता इस बार मेरी पत्नी को निकालकर ला दीजिए।' जल के देवता भीतर गए और ऐश्वर्या को बाहर निकालकर लाए और पूछा 'यह है तुम्हारी पत्नी?' उसने कहा 'हाँ, यही है।' ऐश्वर्या को उसने अपने पास रख लिया। जल देवता ने कहा, 'भैय्या, पिछली बार जब मैं नोटों से भरा ब्रीफकेस लेकर आया था तब तो तुम्हारे मन में पाप नहीं आया, तुम सच बोलते रहे, लेकिन इस बार झठ कैसे बोल गया? तेरी पत्नी तो अभी पानी में है। उसने कहा, 'जल देवता अब आपसे क्या छिपाना। पहले आप ब्रीफकेस लाए थे और इस बार ऐश्वर्या को लाए अगर मैं कहता यह नहीं है तो आप माधुरी को ले आते और मैं कहता यह भी नहीं है तो तीसरी बार में आप मेरी असली पत्नी को ले आते और जैसे तीन ब्रीफकेस दिये थे वैसे ही इनको मुझे सौंप देते। अगर मैं 135 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 134 135 136 137 138 139 140 141 142