Book Title: Jivan ki Khushhali ka Raj
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 110
________________ भी छिड़का । मैंने सोचा, आखिर इन प्लास्टिक के फूलों पर पानी छिड़कने का क्या औचित्य? आखिर मैंने पूछ ही लिया कि इन प्लास्टिक के फूलों पर पानी क्यों छिड़क रहे हो ? उसने जवाब दिया ताकि, पड़ौसियों को लगता रहे कि असली फूल हैं। आपके चेहरे पर यह जो मुस्कान है वह प्लास्टिक के फूलों पर छिड़का गया पानी है बस ! भीतर की मुस्कान, भीतर की शांति, भीतर का आनंद मरता जा रहा है। हमारे अन्तर्मन का प्रेम मृतप्रायः होता जा रहा है । जीवन उस साईकिल की तरह हो गया है जो चल तो रही है पर वहीं की वहीं खड़ी है । व्यायाम करने के लिए लोग साइकिल चला तो रहे हैं, पर साइकिल वहीं की वहीं है । कहीं हमारी स्थिति भी ऐसी तो नहीं है ? I मैं जीवन की जो बुनियादी बातें बताना चाहता हूँ, अगर उन्हें जीवन में जी लिया जाए तो जीवन का कायाकल्प हो सकता, जीवन का रूपान्तरण हो सकता है। जीवन में चिर-शांति और चिर - आनंद पाया जा सकता है । ये बातें अगरबत्ती की सुगंध की तरह हैं, जो नासापुटों में अपने आप भर जाती हैं। इन्हें आप अपने भीतर तक उतरने दें, दिमाग में रखने की बजाय दिल तक लाने की कोशिश करें। इच्छाओं का अंत कहाँ जीवन की पहली बुनियादी बात है, अगर आप अपने जीवन में शांति और आनंद पाना चाहते हैं तो दो बातों से जरूर बचें, पहली - आकांक्षाओं का मकड़जाल और दूसरी- व्यर्थ की कल्पनाँ । अगर आपके भीतर चिंता का भूत सवार है, तनाव, अवसाद है, घुटन है, विफलता के कारण कुछ कर नहीं पा रहे हैं, तो इसका मूल कारण है व्यर्थ की कल्पनाएँ और आकांक्षाओं का मकड़जाल। एक इच्छा को पूरी कर देने से क्या इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं ? जितनी इच्छाएँ पूरी करते हैं, उतनी ही बढ़ती जाती हैं । आदमी का अंत होता है, लेकिन इच्छाओं का अंत नहीं होता । हमारी इच्छाएँ आकाश के समान अनंत है । जैसे आकाश मकान के पार समाप्त होता दिखाई देता है, लेकिन वहाँ जाकर देखने से वह फिर उतना ही दूर हो जाता है जितना पहले था । वैसे ही जीवन में इच्छाएँ चाहे जितनी पूरी करते जाएँ, फिर भी वह पकड़ से बाहर रहती हैं । 1 I 1 Jain Education International 109 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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