Book Title: Jivan ki Khushhali ka Raj
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 119
________________ आन-बान और शान रखने के लिए आप लंका पर युद्ध के लिए जा रहे हैं, वानरों की सेना आपके साथ, युद्ध में सहयोगी बन रही है तो मैंने सोचा मैं भी सहयोगी बनूं। मेरे पास और तो कुछ सहयोग करने को नहीं था क्योंकि इन पत्थरों को उठाने की क्षमता तो मुझमें नहीं है तो मैंने सोचा कि इन पत्थरों के बीच जो खाली जगह है उसे मिट्टी डाल-डालकर भर दं, ताकि जब आप सेना सहित इस पर से गुजरें तो ये पत्थर आपको न चु ।' ___भगवान श्रीराम ने कहा, 'गिलहरी, तू महान है, पर एक बात तो बता। यहाँ तो इतनी बड़ी सेना है और तू छोटी-सी बार-बार आ जा रही है, अगर किसी के पांवों के नीचे आकर मर गई तो।' गिलहरी ने कहा, 'प्रभु! तब मैं यह सोचूंगी कि नारी जाति के शील और धर्म को बचाने के लिए जो युद्ध लड़ा गया उसमें सबसे पहले मैं काम आई।' तब राम ने गिलहरी की पीठ पर स्नेह से, प्रेम और वात्सल्य से भरकर अंगुलियाँ चलाई और कहा 'लंका-विजय अभियान में सबसे बड़ा सहयोग तुम्हारा है।' तुम छोटे हो तो यह मत सोचो कि तुम कुछ नहीं कर सकते। जो तुम्हारी हैसियत है तुम उतना तो करो। जो औरों के वक्त-बेवक्त में काम आता है उनका वक्त बेवक्त और बुरा नहीं आता है, जो दूसरों के लिए अपनी आहुति देता है। ईश्वर के घर से उसके लिए आहुतियाँ समर्पित होती हैं। ये वे बातें जिन्हें मैंने अपनी ओर से आपको समर्पित की हैं। ये बातें जीवन के लिए, जीवन के विकास के लिए, सुख के लिए सहज उपयोगी हैं। यदि आप इसमें से दो-चार बिन्दुओं को भी जीवन से जोड़ने में सफल हो जाते हैं, तो निश्चय ही जीवन धन्यभाग हो जाएगा! 118 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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