Book Title: Jivan ki Khushhali ka Raj
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 118
________________ अगर आपके पड़ोसी के कार आ जाए तो जलना मत कि उसके कार आ गई और मेरे तो अभी स्कूटर ही है। यह सोचना कोई बात नहीं। उसके कार आ गई, अच्छा हो गया, मेरी गली में तो एक भी कार नहीं थी, माँ बूढ़ी है अगर कभी रात में बीमार हो गईं तो पडौसी इतना भला है कि कभी तो कार काम आ जाएगी। औरों के साथ नि:स्वार्थ भाव से पेश आएँ। अपने मन को दूसरों के प्रति निर्मल रखें। किसी का कुछ करके कृतज्ञता पाने की कोशिश न करें और न ही किसी से कुछ पाकर कृतघ्न बनें। दूसरों के सहयोगी बनें। अगर आपको पता चल जाए कि आपका पड़ौसी दुकानदार किसी मुसीबत में आ गया है तो उसे नज़रअंदाज़ न करें। उसकी मुसीबत में सहयोगी बनें। जो मुसीबत आज उस घर में आई है कल आपके घर भी आ सकती है। याद रखें मुसीबत किसी व्यक्ति विशेष के पास नहीं आती, वह किसी का भी द्वार खटखटा सकती है। एक-दूसरे का सहयोगी बनना ही मित्रता और मानवता की कसौटी है। सबसे बड़ा सहयोग तुम्हारा __ आप छोटे बच्चे हैं तो भी चिंता न करें, अगर आप निर्धन हैं तब भी फिक्र न करें - जिस तरह भी आप औरों के काम आ सकते हैं आने की कोशिश करें। ___ मुझे याद है - श्रीराम ने लंका-विजय-अभियान प्रारंभ किया। समुद्र पार करने के लिए समुद्र पर पत्थरों का पुल बनना शुरू हुआ। पत्थर पर पत्थर लगाए जा रहे थे कि तभी राम ने देखा एक गिलहरी पानी में जाती है, फिर मिट्टी पर आती है और फिर पत्थरों के बीच जाती है। वापस आती है फिर पानी में जाती है, मिट्टी पर आती है और फिर पत्थरों के बीच चली जाती है। वह बार-बार लगातार यही किए जा रही थी। राम ने सोचा, आखिर यह गिलहरी कर क्या रही है। उन्होंने हनुमान से कहा, इस गिलहरी को पकड़कर लाओ तो। हनुमान गिलहरी पकड़ लाये और राम के हाथ में दे दी। राम ने गिलहरी से पूछा, 'तुम यह बार-बार क्या कर रही हो। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ। तुम पानी में जाती हो, फिर आकर मिट्टी में लोटपोट होती हो, फिर पत्थरों के बीच जाती हो और कुछ करके वापस आ जाती हो'। इस पर उसने कहा, 'भगवन ! मैंने सोचा, सती सीता की रक्षा के लिए, उसकी 117 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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