Book Title: Jivan ki Khushhali ka Raj
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 108
________________ कुछ करना है कर ले। सिकंदर अपनी माँ को बहुत प्यार करता था। वह चाहता था कि उसकी माँ जो उससे बहुत दूर यूनान में थी उसका मुँह देख ले और उसकी गोद में सिर रखकर अपने प्राण छोड़े, लेकिन यह असंभव था। चिकित्सक कुछ नहीं कर पा रहे थे। तब सिकंदर ने वही किया, जो हर सम्पन्न व्यक्ति करता है, उसने अपना दाँव खेला और कहा, 'अगर तुम लोग मुझे चौबीस घंटे की ज़िंदगी दे सके तो मैं प्रत्येक डॉक्टर को एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ दूंगा।' डॉक्टरों ने कहा, 'कैसी मज़ाक करते हो सिकंदर। क्या धन से, सोने से जिंदगी खरीदी जाती है ?' तब हताश हुए सिकंदर ने अपनी जिंदगी का दूसरा दाँव खेला। उसने कहा, 'तुम मुझे केवल बारह घंटे की जिंदगी दे दो मैं तुम्हें अपने विश्व साम्राज्य का आधा हिस्सा दे दूंगा।' डॉक्टरों ने कहा, 'हम कोशिश कर सकते हैं, लेकिन बचाना हमारे हाथ में नहीं है।' और हताश होकर सिकंदर ने जीवन का अंतिम दांव लगाया कि अगर कोई मुझे दस घंटे की जिंदगी दे दे तो दुनिया का सारा साम्राज्य उसके नाम कर दूंगा।' लेकिन कोई ऐसा न कर सका। सिकंदर देखता रहा कि उसकी सांस धीमी पड़ने लगी, उसके प्राण निकलने को हो गए, तब उन क्षणों में मरने से पहले, अपने पास खड़े लोगों से कहा, 'मेरे मरने के बाद लोगों को बताना कि सिकंदर जिसने सारी दुनिया को जीता, पर अपनी ज़िदंगी से हार गया।' जीवन नहीं है बोझ ____ मेरी बातें भी इसी से संबंधित हैं। मैं आपको यही बताना चाहता हूँ कि कहीं आप अंतिम समय में जिंदगी से न हार जाएँ, आपको यह न लगे कि सब कुछ पाकर भी आपने जीवन को खो दिया। पानी व्यर्थ बहता हो तो खटकता है, बल्ब फिजूल जल रहा हो तो खटकता है, कुछ भी अनावश्यक हो रहा हो तो खटकता है - यह अच्छी बात है पर व्यर्थ जाती हुई जिंदगी हमें क्यों नहीं खटकती। मनुष्य की यह बेशकीमती जिंदगी जिसमें वह अपनी महानताओं को उपलब्ध कर सकता है, इस जिंदगी के प्रति सचेत क्यों नहीं रहता। आप यह सावधानी तो रखते हैं कि कहीं धंधे में घाटा न लग जाए, बेटा बिगड़ न जाए, पत्नी किसी और के साथ न हो जाए - इनमें बहुत सावधानी रखी जाती है लेकिन अपनी जिंदगी के प्रति क्या इतनी ही सावधानी 107 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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