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बोली है अनमोल
निर्मल जीवन का चौथा मंत्र है निर्मल वाणी। जब भी किसी से बोलें, किसी से बातचीत करें मधुर भाषा का प्रयोग करें। याद रखें, मुसीबत सदा मुंह से ही आती है। जब भी आप अपनी जीभ का गलत उपयोग करेंगे, तब यह जीभ गलत परिणाम लाएगी। अगर आप किसी के लिए दो शब्द प्रशंसा के नहीं कह सकते तो कृपया किसी की निंदा तो मत कीजिए। जीभ को व्यर्थ में मत घिसिए। जब हम बोलते हैं तो जीभ भीतर की ओर रहती है यह इस बात का संकेत है कि जैसा वह बोल रहा है स्वयं भी वैसा ही है। मधुर वचनों से प्रेम के पुल निर्मित होते हैं वहीं कटु वचनों से द्वेष की दीवारें। याद रखें बाण के घाव तो भरे जा सकते हैं, पर वचन के घाव कभी नहीं भर पाते।
बुरा आदमी औरों की बुराइयाँ और अच्छा आदमी अच्छाइयाँ बतलाता है। अगर आप प्रेमपूर्वक सम्मान की भाषा बोल सकें तो बहुत अच्छी बात है। आप औरों को सम्मान दें दूसरे भी आपको सम्मान देंगे। दूसरों को 'तू-तू' कहने वाला 'तू-तू' सुनता है और दूसरों को 'आप-आप' कहने वाला खुद के लिए भी 'आप' सुनता है। आप जैसी भाषा और वाणी बोलेंगे वैसी ही आप पर लौटकर आएगी। यह तो ईको साउण्ड है। अगर आप कुएं के पास जाकर कुएं में 'गधा' बोलेंगे तो 'गधा' ही वापस लौटकर आएगा और 'गणेश' बोलेंगे तो 'गणेश' ही वापस लौटने वाला है। जैसा हम बोल रहे हैं वैसा ही हम पर प्रतिध्वनित होने वाला है। इन होंठों और जबान से गीत भी गुनगुना सकते हो और चाहो तो गाली भी निकाल सकते हो। यह हम पर निर्भर है कि हम इस जबान का कैसा और क्या उपयोग करते हैं।
हम एकाकीपन में भी अपने आत्म-संयम को बरकरार रखें। एक संयमी की प्रशंसा करना सरल है, पर वैसा संयमी जीवन जीना मुश्किल है। उत्तम कर्म ही हमारी पूजा बने और वही हमारा आशीर्वाद ।
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