Book Title: Jivan ki Khushhali ka Raj
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 102
________________ जाएं, तो भी उसके लिए हमेशा सुख की कामना करें। जिसने आपके लिए अशुभ किया उसके लिए भी आप शुभ चिन्तन करें। मन के दोष हैं तीन ___ हमारे मन की निर्मल दशा, निर्मल सोच, निर्मल भावना यही तो जीवन की निर्मलता है। हमारे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि हमने अपनी मनोदशा को निर्मल कर लिया है। हमारा यह मन, हमारे अन्तर्हदय में परमात्मा को विराजमान करने का दिव्य सिंहासन बन सकता है। आप उसे अपवित्र न करें, उसे बिगाड़ने की कोशिश न करें। लोग कहते हैं कि मैं क्या करता, उस समय मुझे गुस्सा आ गया। मैं पूछता हूँ कि कहाँ से आ गया, किस लोक से आ गया। गुस्सा कहीं से आया नहीं, यह तो हमारे भीतर दबा हुआ ही था, मन की वृत्ति में। निमित्त मिलते ही वह उजागर हो गया। ___ मन के तीन दोष हैं-मूर्छा, वासना, आवेश। मूर्छा मन में पलने वाली आसक्ति है। अति लगाव की भावना भी मूर्छा है। संसार क्या है? मनुष्य के मन में पलने वाली आसक्ति और मूर्छा ही तो है जिसने इसका त्याग कर दिया, उसी का मन शांत हो सकेगा। किसी ने पत्नी छोड़ी या न छोड़ी, परिवार का त्याग किया या न किया, दुकान, मकान, पद, वैभव छोड़ा या न छोड़ा लेकिन जिसने आसक्ति और मूर्छा का त्याग कर दिया उसका मन शांत हो गया। अगर आप मूर्छा-भाव को हटाना चाहते हैं तो इसके लिए निर्लिप्तता का उपयोग करें। सबके साथ, सबके बीच रहकर भी सबसे ऊपर उठे रहें, निर्लिप्त रहें। संसार में कमलवत रहें। जैसे धाय माता बच्चे को खिलाती है, वह जानती है कि यह बच्चा मेरा नहीं है, किसी और का है। वैसे ही अपने घर, परिवार, ऑफिस में निर्लिप्त रहो। पांव भले ही कीचड़ में हों, पर मनोमस्तिष्क कीचड़ से बाहर रहे। भगवान कृष्ण के लिए अनासक्त कर्मयोगी शब्द का प्रयोग किया गया है। जबकि कहा जाता है कि उनके सोलह हजार पत्नियां थी। तुम तो एक में ही जिंदगी भर के लिए धंसे रह गए। अभी भी अगर मुक्ति की वेला आती है तो आदमी कहता है मेरा मन तृप्त नहीं हुआ। मनुष्य का जीवन पूर्ण हो जाता है, लेकिन उसके मन की कामनाएँ कभी पूर्ण नहीं होती। मन का दूसरा दोष है - वासना। अगर व्यक्ति के भीतर वासना की 101 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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