Book Title: Jivan ki Khushhali ka Raj
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 94
________________ स्तर की होनी चाहिए । जब तक व्यक्ति की सोच नहीं सुधरेगी, तब तक व्यक्ति का जीवन नहीं सुधर पाएगा। , आप देखें कि आपकी सोच में क्या है ? कहीं ऐसा तो नहीं है कि आपकी प्रार्थनाओं में विश्व - कल्याण की भावना है और सोच में है औरों के अनिष्ट की कामना । ईमानदारी से देखें - जब आप सुबह प्रार्थना करते हैं तो होठों पर होता है 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया' सभी सुखी हो, सभी निरोगी हो सभी भद्र और कल्याण के मार्ग पर चलें । लेकिन अपनी अन्तर्सोच को देखें, वह क्या कह रही है । हम केवल होठों से औरों के कल्याण की प्रार्थना करते हैं, पर हम अपनी सोच में औरों के अनिष्ट की कामना ही करते रहते हैं । मेरा भला हो, औरों का दीवाला हो, स्वार्थवश ऐसी सोच हो जाती है हमारी । 1 सुंदर सोच का सौंदर्य अपनी सोच में इंसान जितना गिरता है मैं नहीं सोचता कि वह अन्य कहीं गिर सकता है। घटिया सोच से उसका आचरण घटिया होता है । सोच बिगड़ने से उसका विचार बिगड़ता है, व्यवहार बिगड़ता है, जीवन जीने की शैली बिगड़ती है। आप स्वयं देखें कि आपकी सोच में पुण्य की कामना और भावना कितनी है ? । आप सड़क पर चल रहे हैं, वहाँ किसी सुंदर महिला को देखकर सीता का भाव आता है या घटिया स्तर की भावना पैदा होती है। सड़क पर चलते हुए लंगड़े आदमी को देखकर हम हंस सकते हैं, पर हमारी जो सोच लंगड़ी होती जा रही है, उसके लिए हम क्या कर रहे हैं ? अंधा व्यक्ति अगर चलते हुए गिर पड़े तो हम हंस देते हैं, लेकिन हमारी सोच जो अंधी होती जा रही है, उसका क्या, उससे अनभिज्ञता क्यों ? किसी बौने आदमी को देखकर हम मज़ाक उड़ाने वाले लोग क्या अपनी बौनी सोच को देखते हैं? बुरी सोच हमारे आचरण को दूषित करती है और व्यवहार को कुटिल बनाती है । आप बहुत सुंदर दिखाई दे सकते हैं लेकिन याद रखिए आप तब तक सुंदर नहीं हो सकते जब तक आपकी सोच सुंदर न हो । सुंदर चेहरा शरीर का सौंदर्य हो सकता है, लेकिन सुंदर सोच जीवन का सौंदर्य है । 1 जन्म से आप नाटे, काले, मोटे होंठ, मोटी नाक वाले असुंदर हो सकते हैं, क्योंकि यह आपके हाथ में नहीं था । इससे अधिक फ़र्क़ भी नहीं पड़ता Jain Education International 93 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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