Book Title: Jivan ki Khushhali ka Raj
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 93
________________ व्यक्ति के जीवन की निर्मलता में ही धर्म और शांति छिपी है। जितना साफ सुथरा घर के देवालय या मंदिर के मूल गर्भगृह को रखने की कोशिश करते हैं, हम अपने जीवन के देवालय को भी उतना ही निर्मल और साफ रखें क्योंकि यह सारी धरती परमात्मा का तीर्थ है, हमारा शरीर परमात्मा का मंदिर है और इस शरीर के भीतर विद्यमान आत्म-तत्व ही परमात्म-ज्योति है। ईमानदारी से ज़रा अपने आप को टटोलें। कहने को बाह्य रूप से व्यक्ति ईमानदार होता है लेकिन बेईमानी का मौका मिलने पर आदमी चूकता नहीं है। अगर हम अपना आत्मावलोकन करें तो पाएंगे कि हमारी मनःस्थिति क्या है, हमारी मानसिकता कैसी है, हमारे कर्म कैसे हैं, हमारी दृष्टि कैसी है, हम कैसे काम कर रहे हैं, किस तरह का व्यवसाय कर रहे हैं, हमारे जीवन में कितना अंधेरा छाया है। दुनिया में एक गंगा वह है जो कैलाश पर्वत के गोमुख से निकलकर आती है। हम उस गंगा को निर्मल कहते हैं। मैं चाहता हूं कि व्यक्ति का जीवन भी इतना निर्मल बन जाए कि उसे निर्मल बनाने के लिए किसी गंगा या शत्रुजय नदी में स्नान करने की आवश्यकता न पड़े। उसका अपना जीवन ही गंगा की तरह निर्मल हो जाए, पवित्र हो जाए। बनें निर्मल सोच के स्वामी ___ जीवन की निर्मलता का पहला मंत्र दे रहा हूं जिसे हमें अपने जीवन में जीना है, उतारना है, आचमन करना है। पल-प्रतिपल इस मंत्र को जीना है। जीवन के कायाकल्प के लिए पहला मंत्र है - व्यक्ति अपनी सोच को निर्मल बनाए। आपने सामायिक की या नहीं, मंदिर गए या नहीं, सुबह उठकर गायत्री मंत्र का जाप किया या नहीं, आगम या गीता का पारायण किया या नहीं, ये सब बातें गौण है। पहले अपनी सोच को निर्मल बनाएँ । यह वह मंत्र है जो सुबह भी हमें आनंद से भरेगा, सांझ भी आनंद से भरेगा और भरी दोपहर में भी आपके मन को शांति देगा। हर व्यक्ति दूसरे से महान और श्रेष्ठ होना चाहता है, पर श्रेष्ठताएँ धन या सौन्दर्य अथवा पद से नहीं अपितु बेहतर सोच से आती है। अपनी सोच को निर्मल बनाएं। उत्तम जीवन जीने के लिए ज़रूरी है कि व्यक्ति अपनी सोच को उत्तम बनाए। घटिया सोच रखने वाला व्यक्ति कभी भी बढ़िया जीवन नहीं जी सकता। अच्छा जीवन जीने के लिए सोच भी उच्च 92 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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