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वह सोचा करता है कि उससे कुछ नहीं होगा, उसकी तक़दीर साथ नहीं देगी, उसमें कुछ करने की शक्ति नहीं है। निराशावादी दृष्टिकोण वाला व्यक्ति अपने भाग्य को कमज़ोर ही आँकने की भूल करता है। जो निराशावादी होते हैं, वे अपने मन में चिंतित बने रहते हैं और जीवन में कुछ कर नहीं पाते। अगर आप उन्हें उत्साहित भी करेंगे तो भी वे कुछ नहीं करेंगे, बल्कि कहेंगे उनसे ऐसा नहीं हो सकता। उनकी आदत रहती है हर काम में 'माइनस पाँइट' ढूंढने की। फिर वे लम्बे अरसे तक उत्साहहीन होकर कुछ नहीं कर पाते। फिर मानसिकता विकृत होती है। परिणाम स्वरूप ऐसे लोग जीवन में केवल एक काम करते हैं जो जीवन में आगे चल रहे हैं, उनकी टांग खींचने की कोशिश करते हैं। अगर कोई कुछ कर रहा है तो वह उसे अनुत्साहित करते हैं कि तुम कुछ कर नहीं पाओगे। ____ मेरी नज़र में जिंदगी में तैरना सीखना चाहते हो तो उसके लिये पानी में उतरने का हौसला होना ज़रूरी हैं। एक बार मैं किसी के घर गया। वहां देखता हूँ कि एक बालक बिस्तर पर हाथ-पांव चला रहा था। दस मिनट हो गये उसे यों बिस्तर पर हाथ-पाँव चलाते। मैंने पूछा, 'ये तुम क्या कर रहे हो ? बिस्तर पर हाथ-पांव क्यों चला रहे हो।' कहने लगा, 'तैरना सीख रहा हूं।' मैंने कहा, 'बिस्तर पर कोई कैसे तैरना सीख सकता है ?' कहने लगा, 'तैरना तो पानी में ही सीखा जाता है पर क्या करूं पानी में उतरने में डर लगता है।' जो पानी में नहीं उतरेंगे वे जीवन में कभी तैरना नहीं सीख सकते। भगाएं भय का भूत
चिंता का दूसरा कारण भय है। व्यक्ति के मन में हमेशा भय की ग्रंथि बनी रहती है कि कहीं उसके साथ कुछ हो न जाय, कोई उसके साथ कुछ कर न दे, कोई उसका कुछ बिगाड़ न दे। थोड़ा-सा बीमार पड़ा कि भयभीत होता है कहीं मर न जाऊं। जो होना है, वह होकर रहता है। होनी को टाला नहीं जा सकता। अनहोनी को किया नहीं जा सकता, फिर भय किस बात का। दुनिया में जो जन्मता है, निश्चित ही मरता है, कौन अमर हुआ है ? जो भी मरे हैं वे सोमवार से रविवार तक ही मरे हैं। कोई आठवां वार हुआ नहीं है। फिर फिक्र कैसी, क्योंकि मरना तो निश्चित ही है। याद रखें, भयग्रस्त व्यक्ति सदा चिंताग्रस्त रहता है
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