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जैसे मित्र, वैसा चरित्र
हम अगर किसी की खामियाँ या खूबियाँ, उसका व्यक्तित्व या उसकी निजी जिंदगी को जांचना और परखना चाहते हैं तो न उसके परिवार से पूछे, न ही पड़ौसियों से केवल इतना-सा पता लगा लें कि उसके मित्र कैसे हैं! जैसे व्यक्ति के मित्र होते हैं, परिचित होते हैं, जिन लोगों के साथ उसकी संगति होती है, मानकर चलें कि वह व्यक्ति लगभग वैसा ही होता है। पति या पत्नी के चयन में रखी गई सावधानी यदि जीवन को 60 प्रतिशत दुःखों से बचा सकती है तो मित्रों के चयन में उससे भी अधिक सावधानी रखकर जीवन के अस्सी प्रतिशत गलत कार्यों से स्वयं को बचाया जा सकता है। लड़की की शादी करते समय हम ध्यान रखते हैं कि वर में कौन-कौन-सी योग्यताएँ हों और जब बहु को लेकर आना है तो पता करते हैं कि लड़की का स्वभाव कैसा है। जितनी सावधानी पति और पत्नी के चयन में रखी जानी चाहिए, मित्रों के चयन में उससे अधिक सावधानी रखें।
सौम्य स्वभाव की पत्नी न मिली तो वह तुम्हारे जीवन को दुःख से भर देगी, लेकिन गलत स्वभाव का मित्र मिल गया तो वह तुम्हारी सात पीढ़ियों को दु:खी कर देगा। गुस्सैल या गलत स्वभाव वाला पति मिल गया तो वह तुम्हारे जीवन को दु:खी करेगा लेकिन गलत आदत वाला मित्र मिल गया तो पूरे परिवार को ही दुःखी और पीड़ित कर देगा। व्यक्ति जैसा स्वयं होता है वैसा ही अपने मित्रों का चयन करता है। अथवा इसे यों भी समझ सकते हैं कि व्यक्ति के जैसे मित्र होते हैं वैसा ही वह स्वयं बन जाता है। व्यक्ति का जैसा नज़रिया और स्तर होता है, मित्र वैसा ही होता है। क्षणिक परिचय मित्रता नहीं
व्यक्ति की जैसी सोच, मानसिकता, चयन-दृष्टि होती है वह वैसे ही मित्र बनाता है। आदमी को पता नहीं है कि वह किस तरह के दोस्त चाहता है, उसमें कौनसी खासियत होनी चाहिए। बस, कहीं मिले थे, बचपन में स्कूल में पढ़ते थे, या ट्रेन में सफर करते हुए मिले थे या फिल्म देखने जा रहे थे तब मिले थे, या सत्संग में जाते हुए मिल गए धीरे-धीरे परिचय बढ़ा, हमने अपना विजिटिंग कार्ड उसे दिया, उसने अपना विजिटिंग कार्ड हमें दिया। मेल-मिलाप बढ़ा। इस तरह के मेल-मिलाप से मित्रता बढ़नी शुरू हो गई। न हम जांच-पड़ताल
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