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1. मोहासक्ति से ऊपर उठने की कोशिश करें। अगर आप अपने बुढ़ापे को सुखमय और सार्थकता से जीना चाहते हैं, तो आपके मन में घर-परिवार और विशेषकर धन के प्रति जो मोह-वृत्ति है उससे बाहर आएँ। ज्यादा कंजूसी अच्छी बात नहीं है। बुढ़ापे में भी यह सोच रहे हैं कि अपने बच्चों के लिए संग्रह कर लूँ तो छोड़ें इस बात को। बच्चों के पंख लग गए हैं, वे उड़ रहे हैं, अपनी व्यवस्था खुद कर रहे हैं, आप क्यों कंजूसी कर रहे हैं। व्यर्थ की मोहासक्ति और व्यर्थ की लोभ की प्रवृत्ति त्याग दें। व्यवस्थित जिएँ, ताकि बुढ़ापा आप पर प्रभाव न डाल सके।
एक प्यारी घटना बताता हूँ। हम नाकोड़ा में थे, जोधपुर से एक वृद्ध दम्पति दर्शनार्थ वहाँ आए हुए थे। वे हमसे भी मिले। थोड़ी कंजूस प्रकृति के थे। मैंने कहा, भोजन कर लीजिए। पत्नी कहने लगी, तीर्थ में आए हैं तो धर्म की रोटी नहीं खाएँगे, टोकन से ही खाएँगे। मैंने कहा जैसी आपकी मर्जी, आप लोग खाना खाकर आ जाएँ। उनका विचार था कि भोजनशाला में जाएँगे तो दो थाली के पैसे लग जाएंगे। एक थाली यहीं मंगा लेता हूँ। दोनों एक ही थाली में खा लेंगे। मैंने कहा - ठीक है, यहीं व्यवस्था करा देता हूँ। मैंने एक व्यक्ति को भेजा और खाना मंगवा दिया और कहा कि पास में जो कमरा है उसमें बैठकर भोजन कर लीजिए। पति खाना खा रहा था और पत्नी यूं ही बैठी थी। मैंने कहा सर्दी का मौसम है, खाना ठंडा हो जाएगा। आप साथ में ही खा लीजिए। कहने लगी-नहीं, ये खा लें फिर मैं खा लूंगी। मैंने तीन बार कहा, पर नहीं मानीं। कहने लगी-बात कुछ और है। मैंने पूछा, क्या मतलब? बताया-ये खाकर खड़े होंगे तो मैं खाऊंगी, क्योंकि हम दोनों के बीच हमारी बत्तीसी एक ही है। ऐसी कंजूसी भी किस काम की?
दूसरा रत्न-स्वयं को स्वस्थ महसूस करें और सक्रिय रहें। आप दीर्घजीवी के साथ स्वस्थ जीवी हों। आप जब तक सक्रिय रहेंगे, बुढ़ापा आपसे दूर रहेगा। अगर जवानी में भी निष्क्रिय हो गये तो गये काम से। बुढ़ापा रोकने के लिए - सदा गतिशील रहें। जहाँ तक संभव हो अपने कार्यों के लिए औरों पर आश्रित होने की बजाय अपने कार्यों को स्वयं सम्पादित करने का प्रयास करें। इससे आप स्वावलम्बी भी रहेंगे और सक्रिय भी। शरीर का जितना उपयोग करें यह उतना ही चार्ज होता जाएगा। घर के छोटेमोटे कार्यों में हिस्सा बंटाते रहें। इससे आप थोड़े व्यस्त रहेंगे और जिंदगी में
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