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कुटिलता तो नहीं है। हमारी मुस्कान में कहीं कृत्रिमता तो नहीं है । हम जो दूसरों से गले मिलने की योजना बना रहे हैं इसमें कोई धूर्तता तो नहीं है । हमारी मित्रता में कोई शठता की सोच तो नहीं है। एक बार जरूर अपने में झाँक लें क्योंकि आदमी बाहर से अपने आपको जितना अच्छा दिखाता है, जरूरी है कि वह भीतर से उससे दोगुना अच्छा हो । दुनिया का एक मशहूर टॉवर है 'कैलगेरी', उसकी ऊँचाई एक सौ नब्बे मीटर और वजन है दस हजार आठ सौ टन। वह टॉवर पृथ्वी सतह पर जितना ऊँचा है उसका चालीस प्रतिशत बाहर और साठ प्रतिशत जमीन के अंदर है । बाहर के हिस्से में चार हजार टन लोहा और ज़मीन के भीतरी हिस्से में छह हजार टन से अधिक लोहा लगा है। किसी भी टॉवर की मज़बूती के लिए ज़रूरी है कि वह जितना बाहर दिखता है उससे अधिक भीतर हो और आदमी के श्रेष्ठ व्यवहार के लिए ज़रूरी है कि जितना उसका अच्छा व्यवहार बाहर हो उतना ही अच्छा मन भीतर भी हो ।
न बनें कागज के फूल
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खोखली जड़ों को लेकर अगर कोई पेड़ अपने आपको शोभायुक्त समझता है तो यह शोभा शीघ्र ही समाप्त हो जाने वाली है । व्यक्ति जैसा अपने आपको बाहर से दिखाता है उसका निजी और अंतरंग जीवन साठ प्रतिशत अच्छा हो। आपने देखा होगा कि पानी से भरे ड्रम में अगर हम बर्फ की शिला डालते हैं तो उसका नब्बे प्रतिशत भाग पानी के भीतर रहता है और दस प्रतिशत बाहर। वहीं हवा से भरा गुब्बारा पानी में छोड़ा जाए तो उसका दस प्रतिशत भाग पानी को छूता है और नब्बे प्रतिशत बाहर रहता है । व्यक्ति को अपना व्यवहार बर्फ़ की शिला की तरह रखना चाहिए। जितना श्रेष्ठ स्वयं को व्यवहार में दिखाए उससे ज्यादा श्रेष्ठ भीतर से होना चाहिए । यही है जीवन का रहस्य । जो लोग अपने जीवन को बेहतर तरीके से जीना सीख लेते हैं, बाहर और भीतर से जीवन को एकरूप बनाते हुए जीवन की महानताओं को आत्मसात् कर लेते हैं वे बर्फ़ की तरह होते हैं । वे दस प्रतिशत तो बाहर की तरफ दिखाते हैं और नब्बे प्रतिशत भीतर से अच्छे होते हैं, लेकिन कुछ लोग कृत्रिम ज़िंदगी जीया करते हैं - प्लास्टिक और कागज के फूलों की तरह। जो दिखने में तो अति सुंदर लगते हैं, लेकिन सुगंध नदारद रहती है। ऐसे लोग बाहर से अपने आपको नब्बे प्रतिशत अच्छा दिखाते हैं पर भीतर
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