Book Title: Jivan ki Khushhali ka Raj
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 83
________________ खड़े होकर पाँच लाख का दान करते हैं पर हमारे नौकर की पत्नी अगर बीमार हो जाए और वो हमसे बीस हजार रुपये पत्नी के इलाज के लिए उधार मांग ले तो हमें देने में क्यों हिचकिचाहट होती है! न लौटेंगे शब्दों के तीर व्यवहार को प्रभावी बनाने के लिए तीसरी बात है कि शब्दों का चयन सावधानी से करें। हर बात सोचने की तो होती है पर हर बात कहने की नहीं होती। बुद्धिमान सोचकर बोलता है और बुद्ध बोलकर सोचता है। इससे अधिक फ़र्क नहीं है बुद्धिमान और बुद्ध में। इसलिए बोलने में अपने शब्दों का चयन सावधानीपूर्वक करें। सतर्कतापूर्वक करें। जीभ तो आपकी अपनी है और इस पर नियंत्रण भी आपको ही रखना पड़ेगा। हमारी एक जीभ की रक्षा बत्तीस पहरेदार करते हैं लेकिन जीभ का अगर ग़लत उपयोग कर लिया तो बत्तीस पहरेदार (दाँत) भी संकट में पड़ जाएँगे। यह अकेली बत्तीसी को तुड़वा सकती है। इसलिए ग़लत टिप्पणी न करें और न ही व्यंग्य में अपनी बात को पेश करें। किसी को आप खाने में चार मिठाई भले ही न खिला सकें लेकिन आपके चार मीठे बोल खाने को जायकेदार बना देंगे। वाणी का बेहतर उपयोग करना सीखें, क्योंकि मुँह से निकले हुए शब्द कभी लौटाये नहीं जा सकते हैं। ___मुझे याद है कि एक किसान ने अपने पड़ौसी की खूब निन्दा की, अनर्गल बातें उसके बारे में बोली। बोलने के बाद उसे लगा कि उसने कुछ ज्यादा ही कह दिया, गलत कर दिया। वह पादरी के पास गया और बोला 'मैंने अपने पड़ौसी की निन्दा में बहुत उल्टी-सीधी बातें कर दी हैं, अब उन बातों को कैसे वापस लूँ ?' पादरी ने वहाँ बिखरे हुए पक्षियों के पंख इकट्ठा करके दिये और कहा शहर के चौराहे पर डालकर आ जाओ। जब वापस आ गया तो पादरी ने कहा, 'अब जाओ और इन पंखों को वापस इकट्ठा करके ले आओ।' किसान गया, लेकिन चौराहे पर एक भी पंख नहीं मिला। सब हवा में तितर-बितर हो चुके थे। किसान खाली हाथ पादरी के पास लौट आया। पादरी ने कहा, 'यही जीवन का विज्ञान है कि जैसे पंखों को इकट्ठा करना मुश्किल है वैसे ही बोली हुई वाणी को लौटाना हमारे हाथ में नहीं है। जैसे कमान से निकला हुआ तीर वापस नहीं लौटता वैसे ही मुंह से निकले हुए शब्द कभी वापस नहीं लौटाये जा सकते 82 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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