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जीवन को खेल समझें । जीवन हंसता - खिलता एक खिलौना है । इस खिलौने को उतना ही चलना है जितनी इसमें चाबी भरी गई है । प्रायः लोग जवानी को उमंग से जी लेते हैं पर बुढ़ापे में निराश हताश हो जाते हैं। बुढ़ापा उनके लिए भारभूत हो जाता है। शांतिपूर्ण बुढ़ापे के लिए मुक्त रहें । मौत प्रत्येक व्यक्ति को जिंदगी में एक बार ही मारती है और समय से पहले मारना मौत के हाथ में नहीं होता । पर अन्तर मन में पलने वाला मृत्यु का भय हमें बार-बार मारता है, समय से पहले मारता है।
अच्छा होगा आप तनाव और चिंता से भी बचकर रहें । चिंता बुढ़ापे का दोष है इसका त्याग करें। हर दिन की शुरुआत प्रसन्नता से करें । परिस्थितियों के बदलने के बावजूद अपने मन की स्थिति न बदलें । घरेलू व्यवस्थाओं में ज्यादा हस्तक्षेप न करें। अगर आप निर्लिप्त भाव से घर में रहेंगे तो सौ तरह के मानसिक क्लेशों से बचे रहेंगे। बुढ़ापे को विषाद की बजाय प्रसाद मानकर इसका शांति और मुक्ति के लिए उपयोग करें। बुढ़ापा यानी संतजीवन - मुक्ति का जीवन, शांति का जीवन । बस, इतना याद रखिए और बुढ़ापे को सार्थक कीजिए । बुढ़ापे की धन्यता के लिए कुछ बातें निवेदन की हैं, इन्हें ध्यान में रखिए और आनंदित बुढ़ापे के स्वामी बनिये ।
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