________________
निकल रहा है आप मेरे मित्र हैं । स्वार्थ भरी दुनिया में सब एक-दूजे से काम निकालने में लगे हुए हैं, मतलब सिद्ध करने में जुटे हुए हैं। कौन अपना और कौन पराया ! ज़िंदगी का सच तो यह है कि अपने भी कभी अपने नहीं होते । यहाँ कौन किसके, सब रिश्ते स्वार्थ के ।
न कोई कामना, सिर्फ प्रेम भावना
भगवान महावीर से जब पूछा गया कि व्यक्ति किसे अपना मित्र बनाए, किसके साथ अपनी दोस्ती का हाथ बढ़ाए तो महावीर ने कहा था सत्त्वसु मैत्री - तुम उनके साथ मित्रता करो, जिनके जीवन में सत्व हो, यथार्थ हो, जिनकी जिंदगी दोहरी न हो, जो अच्छे संस्कारों से युक्त हों, जिनके जीवन में धर्म और अध्यात्म के लिए जगह हो । जो नेक दिल हों, बुरी आदतों से बचे हों, बुरे काम से डरते हों, अच्छे कामों में विश्वास करते हों । मित्र का चयन मौज-मस्ती के लिए न करें। हमारी मित्रता न तो स्वार्थ से जुड़े, न कामना से, न वासना से, न तृष्णा से । मित्रता केवल प्रेमभावना से जुड़े । मित्र वही जो एक-दूसरे के बुरे वक्त में काम आ सके।
ध्यान रखें कि मित्र का दृष्टिकोण आपके प्रति कैसा है। बचपन में जब मैं संस्कृत का अध्ययन कर रहा था तब मैंने पंचतंत्र की कहानियाँ पढ़ी थीं । उन कहानियों में मित्रता से संबंधित कहानियाँ भी थी। बंदर और मगरमच्छ की कहानी आप सभी जानते हैं, जिसमें बंदर रोज मगरमच्छ को जामुन खिलाता और उसकी पत्नी के लिए भी दे देता । रोज मीठे-मीठे जामुन खाकर मगरमच्छ की पत्नी जिद कर बैठी कि जिसके दिए जामुन इतने मीठे हैं, वह खुद कितना मीठा होगा, इसलिए वह उसे ही खाना चाहती है । पत्नी की बात और पति न माने! पहले तो समझाने की कोशिश की लेकिन अन्ततः उसकी बात माननी ही पड़ी और तट पर आकर बंदर से कहा, 'तुम्हारी भाभी ने तुम्हें भोजन पर बुलाया है, वह तुमसे मिलना चाहती है।'
――
बंदर ने इंकार कर दिया कि वह पानी में कैसे जाएगा । उसे तो तैरना भी नहीं आता। तब मगरमच्छ ने समझाया कि वह उसे अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाएगा। बंदर राजी हो गया । मगरमच्छ ने जब आधी नदी पार कर ली तो यह सोचकर कि अब यह बंदर कहाँ जाएगा, पानी में तैर तो नहीं सकता, पेड़ भी बहुत दूर छूट चुका । उसने राज खोल दिया तुम रोज मीठे-मीठे जामुन
Jain Education International
50
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org