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के पास रहकर अच्छाइयाँ तो सीख नहीं पाते। हाँ, बुरे आदमी की संगति से बुराइयाँ जरूर सीख जाते हैं। अगर नाला गंगा में मिलता है तो गंगाजल कहलाता है लेकिन गंगा का पानी नाले में डाल दें तो वह भी अपवित्र हो जाता है।
कबीरा गंदी कोटची पानी पिवे न कोय,
जाय मिले जब गंग में, सो गंगोदक होय। किले के चारों ओर खुदी खंदक का पानी कोई नहीं पीता, लेकिन वही पानी जब गंगा में मिल जाता है तो गंगोदक बन जाता है और लोग चरणामृत मानकर उसे ग्रहण भी कर लेते हैं।
आप अपने इर्द-गिर्द रहने वाले लोगों को तोल लें कि वे किस स्तर के हैं? आपके जीवन में मित्रों की क्वान्टिटी कम हो तो कोई बात नहीं, लेकिन जितने भी मित्र हों, अच्छी क्वालिटी के हों। अच्छे लोगों के साथ, महान लोगों के साथ जिओ, क्योंकि जिनके साथ हम रहेंगे, वैसे ही बन जाएंगे। आदमी तो क्या तोता भी जिनके बीच रहता है, वैसा ही बनता चला जाता है। जैसा साथ, वैसी बात
किसी व्यक्ति के पास दो तोते थे। उसने एक तोता दिया डाकू-शैतान को, दूसरा दिया एक संत को, भगवान के भक्त को। तोते दोनों एक जैसे। दो माह बाद जब वह व्यक्ति उस संत के यहाँ पहुँचा तो तोते ने कहा 'राम-राम, घर पर आया मेहमान, 'राम-राम' उस व्यक्ति ने सोचा 'अहा! तोता कितना अच्छा है। मेहमान का स्वागत करता है 'राम' का नाम भी लेता है। ' वह आगे चला और पहुँचा डाकू सरदार के यहाँ जहाँ उसने दूसरा तोता दिया था।
दूर से आते हुए व्यक्ति को देखकर तोता चिल्लाया, 'अरे आओ, मारोमारो, काटो-काटो, लूटो-लूटो'। उस व्यक्ति ने सोचा- ये दोनों तोते एक माँ के बेटे, दोनों भाई लेकिन दोनों में कितना अंतर! एक कहता है- आओ स्वागतम्, राम-राम। दूसरा कहता है- मारो-काटो-लूटो। उसे समझते देर न लगी कि तोता तो तोता है जिसके पास रहा, जैसी संगति में रहा वैसा ही उस पर असर हुआ। अगर डाकू साधु की संगति पाता है तो वह डाकू नहीं रहता बल्कि महान संत और 'रामायण' का रचयिता बन जाता है। व्यक्ति जैसी सोहबत पाता है वैसा ही बनता जाता है। आप अपना आकलन कर लें कि आप किन लोगों के साथ रह रहे हैं, किस तरह के लोगों के बीच रह रहे हैं।
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