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किसे बनाएं अपना मित्र स्वार्थी मित्र हमारे साये की तरह होते हैं,
जो सुख की धूप में साथ चलते हैं, परन्तु संकट के अंधेरे में साथ छोड़ देते हैं।
जीवन में तीन चीजें व्यक्ति को नसीब से मिला करती हैं। अच्छी पत्नी, अच्छी संतान और अच्छा मित्र। हकीकत तो यह है कि पत्नी और संतान से भी ज्यादा अच्छे नसीब होने पर अच्छा मित्र मिलता है। पत्नी अच्छी या बुरी मिली है तो इसमें सारा श्रेय या सारा दोष हमारा नहीं है। पत्नी का चयन परिवार के द्वारा किया गया था। उसके चयन में शायद उतनी बड़ी भूमिका तुम्हारी नहीं थी, जितनी कि तुम्हारे माता-पिता की थी। संतान प्रकृति की देन है। वह अच्छी निकलेगी या बुरी इसमें भी हमारा शत-प्रतिशत हाथ नहीं होता है, लेकिन मित्रों का चयन व्यक्ति स्वयं करता है। इसलिए अपने विवेक, अपनी प्रज्ञा, बुद्धि और सजगता का उपयोग करता है। पत्नी और संतान के चयन में किसी और की भूमिका रह सकती है लेकिन मित्रों का चयन तो हमने स्वयं किया है और मित्र वैसे ही होते हैं जैसे हमारा व्यक्तित्व होता है, जैसे हमारे विचार होते हैं, हमारी सोच होती है। मित्र तो ढाई अक्षर का वह रत्न है, जिसकी महिमा में दुनियाभर के शब्द भी कम पड़ेंगे।
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