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प्रत्येक पहलू पर आघात करती है, परिणाम स्वरूप हम पारिवारिक, सामाजिक
और व्यावहारिक क्षेत्र में कमजोर हो जाते हैं। चिंताग्रस्त व्यक्ति हर समय स्वयं को दुःखी और हताश महसूस करता है। चिंताग्रस्त व्यक्ति का न स्वयं पर विश्वास होता है न औरों पर। वह दूसरों को संदेह की नज़र से देखता है। अपनी शक्तियों पर उसे विश्वास नहीं रहता। उसकी स्मरणशक्ति कमजोर हो जाती है। उसे जो कार्य करने होते हैं हर समय चिंताग्रस्त रहने के कारण उन कार्यों को भी भूल जाता है। चिता एक बार जलाती है लेकिन चिंता बार-बार जलाती रहती है। क्या हम यह पहचानने की कोशिश करेंगे कि हम चिंतित क्यों हैं? अगर हम जीवन को सहजता से, सरलता से स्वीकार कर लें तो हजार तरह की चिंताओं से बच सकते हैं। जिंदगी को युद्ध मानने की बजाय जिंदगी को खेल मानकर चलें।
क्या है चिंता, चिंता के परिणाम क्या हैं, चिंता से कैसे बचा जा सकता है ? हम विचार करते हैं इन बिन्दुओं पर। चिंता नहीं, चिंतन करें
___ घटित या घटित होने वाली घटना के प्रति अपनी मानसिकता को लगातार जोड़े रखने का नाम ही चिंता है। किसी एक बिंदु पर व्यक्ति ने सोचा और निर्णय कर लिया इसका नाम है 'चिंतन' और किसी एक बिंदु पर आदमी लगातार सोचता रहा लेकिन कोई निर्णय नहीं कर पाया इसका नाम है चिंता। अनिर्णय की स्थिति में लगातार किया गया चिंतन चिंता का विकराल रूप ले लेता है और निर्णय की स्थिति में किया गया चिंतन सफलता के द्वार खोल देता है। छोटी-छोटी बातों के कारण तनाव आ जाते हैं। अगर किसी को पूछो कि तुम्हें कोई चिंता है ? वह साफ इन्कार कर देगा, जबकि पूछने वाला
और जिससे पूछा जा रहा है दोनों चिंता में हैं। देखा करता हूं लोगों के पास सब कुछ है-पहनने के लिये रंग-बिरंगे अच्छे कपड़े हैं, हाथ में अच्छी घड़ी बंधी है, पांवों में जूते हैं, रहने के लिए अच्छा सुंदर मकान है, महिलाओं के हाथों में चूड़ियाँ, पाँवों में पायल है, हीरे का सुन्दर-सा हार गले में है, फिर भी चेहरे पर उदासी है। सारी सुविधाओं के बावजूद यदि उदासी है तो मानना होगा कि सुख कहीं और है।
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