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न जाय। एक घटना याद आ रही है । कहते हैं, संत नानइन गांव के बाहर किसी पेड़ के नीचे बैठे रहते थे । पहनने के लिये फटे पुराने कपड़े, बिछाने के लिए फटा आसन और खाना खाने के लिये टूटी-फूटी मिट्टी की थाली यही उनकी सम्पत्ति थी । लेकिन वे इतने मस्त इतने प्रसन्नचित्त, इतने आनंदित थे कि जब देखो वे मुस्कुराते ही रहते । परमात्मा में लीन होते तो अपने दोनों हाथ ऊपर करते और कहते, 'तू बड़ा दयालु है मेरी हर ज़रूरत का ध्यान रखता है ।' सदा इसी बात को दोहराते रहते ।
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कुछ सम्पन्न लोग जो प्रतिदिन उधर से गुजरा करते थे उसकी मस्ती को देखकर ईर्ष्याग्रस्त हो जाते। सोचते हमारे पास सारी सुविधाएं हैं पर मस्ती नहीं और इस फकीर के पास कुछ भी नहीं तब भी इतनी मस्ती में । आखिर एक सम्पन्न व्यक्ति कुछ दूरी पर बैठ गया और सोचने लगा, 'आखिर इस फकीर की मस्ती का राज क्या है ? मैं इस राज़ को ढूंढ कर ही रहूंगा।' वह बैठा रहा । उधर फकीर भी अपनी प्रार्थना कर रहा था। दोपहर के दो बज रहे थे, फकीर भूखा था । वह संम्पन्न व्यक्ति सोच रहा था, 'बंदा सुबह से भूखा है फिर भी कहे जा रहा है कि भगवान, मेरी हर जरूरत का ध्यान रखता है ।' आश्चर्य, तभी एक राहगीर आया और उसने फकीर की थाली में रोटी डाल दी । फकीर तो आंखें बंद करके बैठा था । दो मिनिट बाद आंखें खोली, थाली में रोटी देखी और कहा, 'देखो, ईश्वर कितना ध्यान रखता है, भूख लगी तो भोजन की व्यस्था कर दी।' भोजन के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने के लिए आंखें बंद की और अपनी वही बात फिर दोहरा दी। तभी एक कुत्ता आया और थाली में से रोटी ले भागा।
अब उस संपन्न आदमी ने मन ही मन कहा अब पता लगेगा इसकी मस्ती का। जब आंख खोलेगा और देखेगा कि थाली में से रोटी गायब तो भगवान और कुत्ते को गालियां देगा। फकीर ने आंख खोली, रोटी के लिए हाथ बढ़ाया, थाली में नज़र डाली तो रोटी गायब । दूर देखा तो वह कुत्ता एक रोटी खा रहा था। अब अमीर आदमी ने सोचा कि यह फकीर खड़ा होगा और कुत्ते को डंडे से पीटेगा और सच में फकीर खड़ा हो गया । अमीर ने सोचा अब तो जरूर यह कुत्ते की पिटाई करेगा और इसका भगवान...... । लेकिन आश्चर्य जो फकीर अब तक बैठकर प्रार्थना कर रहा था, खड़े होकर दोनों हाथ ऊंचे किये और कहने लगा, 'अरे वाह खुदा । तू सचमुच बहुत दयालु है
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