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पाया, इसका दुःख चिंता बनकर धीरे-धीरे उसके पेट तक पहुँचा और पेट के रोग पैदा हो गए। चिंता से हमारी मन की शांति तो भंग होती ही है साथ ही आध्यात्मिक शक्तियाँ नष्ट भी हो जाती हैं। चिंता न दे कोई हल
हम चिंतामुक्त ज़रूर हो सकते हैं लेकिन उससे पहले पूछना चाहूंगा कि हम चिंता किसलिए करते हैं ? इस दुनिया में कोई व्यक्ति चिंता करके समस्या का समाधान नहीं निकाल पाया है। जीवन में जो होता है उसे प्रेम से स्वीकार करो। यही सोचो कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। प्रकृति का सिद्धांत है जो जीवन देता है वह जीने की व्यवस्था भी देता है। अगर हम प्रकृति के सान्निध्य और उसकी गोद में जीने की कोशिश करें तो जान लेंगे कि जन्म देने से पहले प्रकृति हमारे लिए माँ का आंचल दूध से भर देता है जब प्रकृति हरेक की व्यवस्था कर रही है तो हम किस बात को लेकर चिंताग्रस्त हों ! जीवन में जो हुआ है वह केवल आपके साथ ही नहीं हुआ, किसी के साथ भी वैसा हो सकता है। जो होता है अच्छे के लिए होता है। इसलिए लाख आ जाएं तो खुशी नहीं, लाख चले जाएं तो कोई रंज या गम नहीं। जीवन में घटित होने वाली आधी घटनाएं ऐसी होती हैं जिनके लिए यह सोचना हितकारी है कि भगवान जो करता है, अच्छे के लिए करता है। अगर कुछेक घटनाओं के लिए हम यह सोच न बना पाएं तो यह सोचकर मन को सांत्वना दे सकते हैं कि जीवन में वही होता है जो होना होता है। जो हुआ, अच्छा हुआ
स्वेट मार्डन दुनिया के महान चिंतक हुए हैं। जब वे बीस वर्ष के थे तो किसी लड़की के चक्कर में पड़ गए। दोनों का प्रेम दो-तीन वर्ष तक चलता रहा। स्वेट मार्डन उस लड़की को प्राणों से ज्यादा चाहने लगे, लेकिन एक दिन अचानक खबर मिली कि स्वेट मार्डन जिस लड़की से बेहद प्यार करता थे, उसने दूसरे से शादी कर ली। स्वेट मार्डन भीतर से टूट गये। उन्हें इतना धक्का लगा कि खाना-पीना छूट गया, नींद हराम हो गई, धंधा छूट गया। कहते हैं उन्होंने घर से निकलना भी बंद कर दिया। घर में पड़ा रहते। सोचते 'ईश्वर ने मेरे ही साथ ऐसा क्यों किया। आखिर, जिसके लिये मैं कुछ भी करने को तैयार था उसने मुझे धोखा क्यों दिया।' दो साल तक वे इन्हीं
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