Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 265
________________ जयन्तीप्रकरणवृत्तिः / तज्ज्ञात्वा सुभद्रासत्याः सम्यग्वि. चारणा। // 252 // हियए पिंडीभूयं अमायन्तं // 40 // सोवालंभं जणणी भणइ सुयं वच्छ मज्झ वयणाई / पडिहणियाई तुमए दइयासीलपसंसाए // 41 // तं सीलं ससिधवलं कलसंचियसाहुराहुमुहपडियं / पेच्छ तुमं वच्छ इमं संपइ दोसायरं चेव // 42 // दइयाए पयचारं रागन्धो जं न पेच्छसे जुत्तं / तं चित्तं अइमचं जमनकहियं न मन्नेसि // 43 // पुत्चय चचो तुमए कमागओ सुगयसासणे धम्मो / एइए अणुरागग्गहगहिएणं किमिह भणिमो?॥४४॥ किं ? निच्छइयं तत्तं हवेञ्जऽणेगंतवायजिणधम्मे / पयडमिणं तुह दइयाविहडियसीलेण निबडियं // 45 // सुगएण पुण पमाणं नाणं पञ्चक्खमुत्तमवियप्पं / बजत्थकप्पणाए एयाए तं सि मूढप्पा // 46 // जणणीए आलावं घरिणीए पुण सीलधम्मवणदावं / संपप्प तयणुराओ मिलाइ कंकेल्लिसाय // 47 // चिन्तइ य बुद्धदासो असीलया होइ किं सुभदाए ? / जायइ किं दुग्गंधी? कयावि कप्पूरपारीचि // 48 // तीए गुणगिरिसिहरे वजनिवाउ व वइयरो एसो। तो किं अत्थ पक्खवाओ? होजा जेणेह दिवगई // 49 // ही संसारसहावो दावो सुकडाण वियडविडवीणं / ते धन्न चिय जीवा भवनवं जे समुचिना // 50 // रचपि मणो पइणो विलाइ जउगोलयं व जलणेण / इमिणा वुचन्तेणं दक्खा लक्खइ सुभद्दावि // 51 // चिन्तइ पुत्वजम्मोवज्जियकम्मेण उदयपत्तेण / पाविति कलंकाई जीव सुद्धेवि सीलंमि // 52 // किन्तु इमं मह दुक्खं जिणिंदधम्मस्स जं ममाहितो। होइ इह तेयहाणी खणी सबाण दोसाण // 53 // हत्थी जिणिन्दधम्मो महिन्दुविम्बं व इमो निम्मलकलावो। महादोसागमणेणं पयण्डकलंको इमो जाओ // 54 // जिणवयणे आरामे वियसियजसपसरकुसुमसमारो / एएणं परिज्झडिओ मज्झऽववायेण वारण // 55 // ही दुल्लहबोहित्तं वियरइ जीवाण चत्तसंमत् / अइदुस्सहदुहसेनं विहियजिणवयणमालितं // 56 // देवगुरुपूयएणं पंचपरमेद्विमन्तज्झ 15555555545. // 252 / /

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