Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 318
________________ हारप्रभा अहिलीभूता। CRORROCURESCORK जिणदत्तो पुण जम्पइ अणुरत्ता जइवि तंसि मझुवरि / तहवि य अदिनकना परिणयणे अस्थि नियमो मे // 77 // कजं परिवाडीए कीरन्तं होइ सुहयपरिणाम / इहपरलोयविरूद्धं बुहेहिं रहसा न कायवं // 78 // ता तह करेसु सुन्दरि ! जह सिट्ठी देह मज्झ सयमेव / तीए मणियं किं पुण! करेमहं कहसु तं चेव // 79 // तो जिणदत्तो जम्पह गहगहिया होसु तं कवडसहिया। महमन्ततन्तजन्तप्पओगओ तुह गुणे जाए // 8 // सिट्ठी तुट्ठो सयमवि दाही ललियंगि! मज्झ तं मन्ने / इहपरलोयसिद्धी एवं चिय होइ मह बुद्धी // 81 // इय अन्नुन्नं मन्तिय अन्नदिणे सा गहिल्लिया होइ / असमञ्जसाइ जम्पइ दुटुं चिट्ठ कुणइ सवं / / 82 // सिट्ठीवि धणो दटुं हारप्पहं निप्पहं नियं तणयं / परमत्थमयाणन्तो अञ्चन्तं आउलीहूओ // 83 // चिन्तइ हा दइव तए कह सहसा एरिसी कयावत्था / एयाए तणयाए निम्मलगुणरयणक्खाणीए // 84 // वाहरइ तओ विजे जोइसिए मन्ततन्तकुसले य / सबोवायपओगे अविसेसे तेहि पडिसिद्धा / / 85 // सिट्ठी उबिग्गमणो जा चिट्ठह ताव तेण चट्टेण / पुट्ठो किं ? अञ्ज दिणे दीसह गुरुदुक्खभरभरिया // 86 // तो सिट्ठिणावि भणियं दुहिया मे मद्द! आवई पत्ता / उक्कलियाहि पयगृह पडिकूलं जलहिवेल व / / 87 // विजाईहिं न सक्का पउणी काउं विचित्ततन्तेहिं / लग्गो दुग्गग्गहो सो अवणिजइ जो न मन्तेहिं // 88 // गहनिग्गहे समत्थो मह. मन्तो अस्थि किन्तु सामग्गी / पडिपुना अइदुल्लहा इय भणियं तयणु चट्टेण / / 90 / / अह सिट्ठिणावि वुत्तं सवं सामग्गियं अहं काहं / ता मह उवरोहेणं कुणसु पसाएणिमं पउणं / / 91 // इसाणविदिसि चउदसितिहीए किन्हाए मंडले लिहिए / पिउवणमज्झे कजे सिज्झइ चउबंभयारीहिं // 92 / / तह चउधणुद्धरेहिं सुसद्दवेहीहिं चउदिसिडिएहिं / एवं चट्टेणुत्ते सामग्गि ECORRENSAR

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